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शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुरं॑धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑। शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥२॥

English Transliteration

śaṁ no bhagaḥ śam u naḥ śaṁso astu śaṁ naḥ puraṁdhiḥ śam u santu rāyaḥ | śaṁ naḥ satyasya suyamasya śaṁsaḥ śaṁ no aryamā purujāto astu ||

Pad Path

शम्। नः॒। भगः॒। शम्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। शंसः॑। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पुर॑म्ऽधिः। शम्। ऊँ॒ इति॑। स॒न्तु॒। रायः॑। शम्। नः॒। स॒त्यस्य॑। सु॒ऽयम॑स्य। शंसः॑। शम्। नः॒। अ॒र्य॒मा। पु॒रु॒ऽजा॒तः। अ॒स्तु॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को जैसे ऐश्वर्य आदि सुख करनेवाले हों, वैसे विधान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (नः) हम लोगों के लिये (भगः) ऐश्वर्य (शम्) सुख करनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (शंसः) शिक्षा वा प्रशंसा (शम्) सुख करनेवाली (उ) और (पुरन्धिः) बहुत पदार्थ जिस में रक्खे जाते हैं वह आकाश (शम्) सुख करनेवाला (अस्तु) हो (नः) हम लोगों के लिये (रायः) धन (शम्) सुख करनेवाले (उ) ही (सन्तु) हों (नः) हम लोगों के लिये (सत्यस्य) यथार्थ धर्म वा परमेश्वर की (सुयमस्य) सुन्दर नियम से प्राप्त करने योग्य व्यवहार की (शंसः) प्रशंसा (शम्) सुख देनेवाली और (पुरुजातः) बहुत मनुष्यों में प्रसिद्ध (अर्यमा) न्यायकारी (नः) हमारे लिये (शम्) आनन्द देनेवाला (अस्तु) होवे, वैसा हम लोग प्रयत्न करें ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम जैसे ऐश्वर्य, पुण्यकीर्त्ति, अवकाश, धन, धर्म, योग और न्यायाधीश सुख करनेवाले हों, वैसा अनुष्ठान करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्यथैश्वर्यादीनि सुखकराणि स्युस्तथा विधेयमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा नो भगः शं नः शंसः शमु पुरन्धिः शमस्तु नः रायः शमु सन्तु नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं पुरुजातोऽर्यमा नः शमस्तु तथा वयं प्रयतेमहि ॥२॥

Word-Meaning: - (शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) सुखकरः (उ) वितर्के (नः) अस्मभ्यम् (शंसः) अनुशासनं प्रशंसा वा (अस्तु) भवतु (शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (पुरन्धिः) पुरवः बहवः पदार्था ध्रियन्ते यस्मिन् स आकाशः (शम्) सुखकराः (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) सुखप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (सत्यस्य) यथार्थस्य धर्मस्य परमेश्वरस्य (सुयमस्य) सुष्ठु नियमेन प्रापणीयस्य (शंसः) प्रशंसा (शम्) आनन्दकरः (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) न्यायकारी (पुरुजातः) पुरुषु बहुषु नरेषु प्रसिद्धः (अस्तु) भवतु ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं यथैश्वर्यं पुण्या कीर्तिरवकाशो धनानि धर्मो योगः न्यायाधीशश्च सुखकराः स्युस्तथाऽनुतिष्ठत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसे ऐश्वर्य, पुण्यकीर्ती, अवकाश, धन, धर्म, योग व न्यायाधीश सुखकारक असतात तसे तुम्हीही वागा. ॥ २ ॥