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ये दे॒वानां॑ य॒ज्ञिया॑ य॒ज्ञिया॑नां॒ मनो॒र्यज॑त्रा अ॒मृता॑ ऋत॒ज्ञाः। ते नो॑ रासन्तामुरुगा॒यम॒द्य यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥१५॥

English Transliteration

ye devānāṁ yajñiyā yajñiyānām manor yajatrā amṛtā ṛtajñāḥ | te no rāsantām urugāyam adya yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

ये। दे॒वाना॑म्। य॒ज्ञियाः॑। य॒ज्ञिया॑नाम्। मनोः॑। यज॑त्राः। अ॒मृताः॑। ऋ॒त॒ऽज्ञाः। ते। नः॒। रा॒स॒न्ता॒म्। उ॒रु॒ऽगा॒यम्। अ॒द्य। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥१५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:15 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किसकी ओर से =को किनसे विद्याध्ययन और उपदेश सुनने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (ये) जो (देवानाम्) विद्वानों के बीच विद्वान् (यज्ञियानाम्) यज्ञ करने के योग्यों में (यज्ञियाः) यज्ञ करने योग्य (मनोः) विचारशील के (यजत्राः) सङ्ग करने (अमृताः) अपने स्वरूप से नित्य वा जीवन्मुक्त रहने (ऋतज्ञाः) और सत्य के जाननेवाले हैं (ते) वे (अद्य) आज (नः) हम लोगों के लिये (उरुगायम्) बहुतों ने गाये हुए विद्याबोध को (रासन्ताम्) देवें, हे विद्वानो ! (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) विद्यादि दानों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदा (पात) रक्षा करो ॥१५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अत्यन्त विद्वान् अत्यन्त शिल्पी सत्य आचरण करनेवाले जीवन्मुक्त ब्रह्मवेत्ता जन हम लोगों को विद्या और सुन्दर शिक्षा से निरन्तर उन्नति देते हैं, उनको हम लोग रखकर सदा सेवें ॥१५॥ इस सूक्त में सर्व सुखों की प्राप्ति के लिये सृष्टिविद्या और विद्वानों के सङ्ग का उपदेश किया, इससे इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ऋग्वेद के पञ्चमाष्टक में तीसरा अध्याय और तीसवाँ वर्ग, सप्तम मण्डल में पैतीसवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः केषां सकाशादध्ययनमुपदेशश्च श्रोतव्य इत्याह ॥

Anvay:

ये देवानां देवा यज्ञियानां यज्ञियाः मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञास्सन्ति तेऽद्य न उरुगायं रासन्तां हे विद्वांसो ! यूयं स्वस्तिभिर्नः सदा पात ॥१५॥

Word-Meaning: - (ये) (देवानाम्) विदुषां मध्ये विद्वांसः (यज्ञियाः) ये यज्ञं कर्तुमर्हन्ति ते (यज्ञियानाम्) (मनोः) मननशीलस्य (यजत्राः) सङ्गन्तारः (अमृताः) स्वस्वरूपेण नित्या जीवन्मुक्ता वा (ऋतज्ञाः) य ऋतं सत्यं जानन्ति (ते) (नः) अस्मभ्यम् (रासन्ताम्) ददतु (उरुगायम्) बहुभिर्गीयमानं विद्याबोधम् (अद्य) इदानीम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) विद्यादिदानैः (सदा) (नः) अस्मान् ॥१५॥
Connotation: - हे मनुष्या ये विद्वत्तमाश्शिल्पितमास्सत्याचारा जीवन्मुक्ता ब्रह्मविदो जना अस्मान् विद्यासुशिक्षाभ्यां सततमुन्नयन्ति तान् वयं संरक्ष्य सदा सेवेमहीति ॥१५॥ अत्र सर्वसुखप्राप्तये सृष्टिविद्याविद्वत्सङ्गमाहात्म्यं चोक्तमत एतत्सूक्तस्यार्थेन सह पूर्वसूक्तार्थस्य सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदे पञ्चमाष्टके तृतीयोऽध्यायस्त्रिंशो वर्गः सप्तमे मण्डले पञ्चत्रिंशत्तमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे अत्यंत विद्वान, उत्तम कारागीर, सत्याचरणी, जीवन्मुक्त, ब्रह्मवेत्ते विद्या व सुशिक्षणाने आमची सतत उन्नती करतात त्यांचे आम्ही संरक्षण करून सेवन करावे. ॥ १५ ॥