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शं नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता त्राय॑माणः॒ शं नो॑ भवन्तू॒षसो॑ विभा॒तीः। शं नः॑ प॒र्जन्यो॑ भवतु प्र॒जाभ्यः॒ शं नः॒ क्षेत्र॑स्य॒ पति॑रस्तु शं॒भुः ॥१०॥

English Transliteration

śaṁ no devaḥ savitā trāyamāṇaḥ śaṁ no bhavantūṣaso vibhātīḥ | śaṁ naḥ parjanyo bhavatu prajābhyaḥ śaṁ naḥ kṣetrasya patir astu śambhuḥ ||

Pad Path

शम्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। त्राय॑माणः। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। उ॒षसः॑। वि॒ऽभा॒तीः। शम्। नः॒। प॒र्जन्यः॑। भ॒व॒तु॒। प्र॒ऽजाभ्यः॑। शम्। नः॒। क्षेत्र॑स्य। पतिः॑। अ॒स्तु॒। श॒म्ऽभुः ॥१०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को कैसी शिक्षा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! तुम वैसे हम लोगों को शिक्षा देओ जैसे (त्रायमाणः) रक्षा करता हुआ (सविता) सकल जगत् की उत्पत्ति करनेवाला ईश्वर (देवः) जो कि सब सुखों का देनेवाला आप ही प्रकाशमान वह (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवतु) हो (विभातीः) विशेषता से दीप्तिवाली (उषसः) प्रभात वेला (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) हों (पर्जन्यः) मेघ (नः) हम (प्रजाभ्यः) प्रजाजनों के लिये (शम्) सुखरूप (भवतु) हो और (क्षेत्रस्य, पतिः) जिसके बीच में निवास करते हैं उस जगत् का स्वामी ईश्वर वा राजा (शम्भुः) सुख की भावना करानेवाला (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । विद्वानों को वेदादि विद्याओं से परमेश्वर आदि पदार्थों के गुण-कर्म-स्वभाव विद्यार्थियों के प्रति यथावत् प्रकाश करने चाहियें, जिससे सबों से उपकार ले सकें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः कीदृशी शिक्षा कार्येत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यूयन्तथास्मान् शिक्षध्वं यथा त्रायमाणः सविता देवो नः शं भवतु विभातीरुषसो नश्शं भवन्तु पर्जन्यः प्रजाभ्यो नश्शं भवतु क्षेत्रस्य पतिश्शम्भुर्नश्शमस्तु ॥१०॥

Word-Meaning: - (शम्) (नः) (देवः) सर्वसुखप्रदाता स्वप्रकाशः (सविता) सकलजगदुत्पादक ईश्वरः (त्रायमाणः) रक्षन् (शम्) (नः) (भवन्तु) (उषसः) प्रभातवेलाः (विभातीः) विशेषेण दीप्तिमत्यः (शम्) (नः) (पर्जन्यः) मेघः (भवतु) (प्रजाभ्यः) (शम्) (नः) (क्षेत्रस्य) क्षयन्ति निवसन्ति यस्मिन् जगति तस्य (पतिः) स्वामीश्वरो राजा वा (अस्तु) (शम्भुः) यः शं सुखं भावयति सः ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वद्भिर्वेदादिविद्याभिः परमेश्वरादिपदार्थगुणकर्मस्वभावा विद्यार्थिनः प्रति यथावत् प्रकाशनीया येन सर्वेभ्य उपकारं ग्रहीतुं शक्नुयुः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वानांनी वेद इत्यादी विद्यांनी परमेश्वर इत्यादी पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव विद्यार्थ्यांसमोर प्रकट करावेत. ज्यामुळे सर्वांकडून उपकार घेता येऊ शकतील. ॥ १० ॥