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मा नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यो॑ रि॒षे धा॒न्मा य॒ज्ञो अ॑स्य स्रिधदृता॒योः ॥१७॥

English Transliteration

mā no hir budhnyo riṣe dhān mā yajño asya sridhad ṛtāyoḥ ||

Pad Path

मा। नः॒। अहिः॑। बु॒ध्न्यः॑। रि॒षे। धा॒त्। मा। य॒ज्ञः। अ॒स्य॒। स्रि॒ध॒त्। ऋ॒त॒ऽयोः ॥१७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:34» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:26» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे राजजन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे (बुध्न्यः) अन्तरिक्ष में उत्पन्न हुआ (अहिः) मेघ (नः) हम लोगों को (रिषे) हिंसा के लिये (मा) मत (धात्) धारण करे वा जैसे (अस्य) इस (ऋतायोः) सत्य न्याय धर्म की कामना करनेवाले राजा का (यज्ञः) प्रजा पालन करने योग्य व्यवहार (मा) मत (स्रिधत्) नष्ट हो वैसा अनुष्ठान करो ॥१७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजन् आदि मनुष्यो ! जैसे अवर्षण न हो, न्यायव्यवहार न नष्ट हो, वैसा तुम विधान करो ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते राजजनाः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा बुध्न्योऽहिर्नो रिषे मा धात् यथाऽस्यर्तायो राज्ञो यज्ञो मा स्रिधत् तथाऽनुतिष्ठत ॥१७॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अहिः) मेघः (बुध्न्यः) बुध्नेऽन्तरिक्षे भवः (रिषे) हिंसनाय (धात्) दध्यात् (मा) निषेधे (यज्ञः) राजपालनीयो व्यवहारः (अस्य) राज्ञः (स्रिधत्) हिंसितः स्यात् (ऋतायोः) ऋतं सत्यं न्यायधर्मं कामयमानस्य ॥१७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजादयो मनुष्या ! यथाऽवृष्टिर्न स्यात् न्यायव्यवहारो न नश्येत्तथा तथा यूयं विधत्त ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादी माणसांनो! अवर्षण होणार नाही व न्याय व्यवहार नष्ट होणार नाही असे तुम्ही विधान करा. ॥ १७ ॥