Go To Mantra

उ॒क्थ॒भृतं॑ साम॒भृतं॑ बिभर्ति॒ ग्रावा॑णं॒ बिभ्र॒त्प्र व॑दा॒त्यग्रे॑। उपै॑नमाध्वं सुमन॒स्यमा॑ना॒ आ वो॑ गच्छाति प्रतृदो॒ वसि॑ष्ठः ॥१४॥

English Transliteration

ukthabhṛtaṁ sāmabhṛtam bibharti grāvāṇam bibhrat pra vadāty agre | upainam ādhvaṁ sumanasyamānā ā vo gacchāti pratṛdo vasiṣṭhaḥ ||

Pad Path

उ॒क्थ॒ऽभृत॑म्। सा॒म॒ऽभृत॑म्। बि॒भ॒र्ति॒। ग्रावा॑णम्। बिभ्र॑त्। प्र। व॒दा॒ति॒। अग्रे॑। उप॑। ए॒न॒म्। आ॒ध्व॒म्। सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑नाः। आ। वः॒। ग॒च्छा॒ति॒। प्र॒ऽतृ॒दः॒। वसि॑ष्ठः ॥१४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:33» Mantra:14 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:14


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर पढ़ाने और पढ़नेवाले जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुमनस्यमानाः) सुन्दर विचारवाले मनुष्यो ! जो (प्रतृदः) अतीव अविद्यादि दोष के नष्ट करनेवाले (ग्रावाणम्) मेघ को सूर्य जैसे वैसे विद्या को (बिभ्रत्) धारता हुआ (वसिष्ठः) अत्यन्तविद्या आदि धन से युक्त (अग्रे) पूर्व (उक्थभृतम्) ऋग्वेद को और (सामभृतम्) सामवेद को धारण करनेवाले को (बिभर्ति) धारण करता वह औरों को (प्र, वदाति) कहे जो (वः) तुम लोगों को (आ, गच्छाति) प्राप्त हो (एनम्) उस की तुम (उप, आध्वम्) उपासना करो ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो विद्यार्थी सकल वेदवेत्ता कुशिक्षा और अविद्या को नष्ट करनेवाले आप्त विद्वान् की पूर्व अच्छे प्रकार सेवा कर विद्या पाय फिर पढ़ाता है, उसकी सब ज्ञान चाहनेवाले जन विद्या पाने के लिये उपासना करते हैं ॥१४॥ इस सूक्त में पढ़ाने-पढ़ने और उपदेश सुनाने और सुननेवालों के गुण और कार्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ऋग्वेद के सातवें मण्डल में दूसरा अनुवाक, तेतीसवाँ सूक्त और पञ्चम अष्टक के तीसरे अध्याय में चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकाऽध्येतारः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे सुमनस्यमाना मनुष्या ! यः प्रतृदो ग्रावाणं सूर्य इव विद्यां बिभ्रद्वसिष्ठोऽग्र उक्थभृतं सामभृतं बिभर्ति सोऽन्यान् प्र वदाति यो व आगच्छाति तमेनं यूयमुपाध्वम् ॥१४॥

Word-Meaning: - (उक्थभृतम्) य ऋग्वेदं बिभर्ति (सामभृतम्) यो सामवेदं दधाति (बिभर्ति) (ग्रावाणम्) सूर्यो मेघमिव (बिभ्रत्) विद्यां धरन् (प्र) (वदाति) वदेत् (अग्रे) पूर्वम् (उप) (एनम्) (आध्वम्) (सुमनस्यमानाः) सुष्ठु विचारयन्तः (आ) (वः) युष्मान् (गच्छाति) गच्छेत् प्राप्नुयात् (प्रतृदः) प्रकर्षेणाविद्यादिदोषहिंसकः (वसिष्ठः) अतिशयेन विद्यादिधनयुक्तः ॥१४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो विद्यार्थी सकलवेदविदं कुशिक्षाऽविद्याहिंसकमाप्तं विद्वांसं पुरः संसेव्य विद्याः पुनरध्यापयति तं सर्वे जिज्ञासवो विद्याप्राप्तये उपासत इति ॥१४॥ अत्राऽऽध्यापकाऽध्येत्रुपदेशकोपदेश्यगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदे सप्तमे मण्डले द्वितीयोऽनुवाकस्त्रयस्त्रिंशं सूक्तं पञ्चमेऽष्टके तृतीयाध्याये चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो विद्यार्थी संपूर्ण वेदविद, कुशिक्षा व अविद्या नष्ट करणारा व विद्वानांची चांगल्या प्रकारे सेवा करून, विद्या प्राप्त करून पुन्हा अध्यापन करतो, जिज्ञासू लोक विद्याप्राप्तीसाठी त्याच्याजवळ याचना करतात. ॥ १४ ॥