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मा नो॒ अज्ञा॑ता वृ॒जना॑ दुरा॒ध्यो॒३॒॑ माशि॑वासो॒ अव॑ क्रमुः। त्वया॑ व॒यं प्र॒वतः॒ शश्व॑तीर॒पोऽति॑ शूर तरामसि ॥२७॥

English Transliteration

mā no ajñātā vṛjanā durādhyo māśivāso ava kramuḥ | tvayā vayam pravataḥ śaśvatīr apo ti śūra tarāmasi ||

Pad Path

मा। नः॒। अज्ञा॑ताः। वृ॒जनाः॑। दुः॒ऽआ॒ध्यः॑। मा। अशि॑वासः। अव॑। क्र॒मुः॒। त्वया॑। व॒यम्। प्र॒ऽवतः॑ शश्व॑तीः। अ॒पः। अति॑। शू॒र॒। त॒रा॒म॒सि॒ ॥२७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:27 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:27


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य समुद्रादिकों को किससे तरें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शूर) निर्भय ! (नः) हम लोगों को (अज्ञाताः) छिपे हुये (वृजनाः) जिनमें जाते हैं वा जिनसे जाते हैं वे (दुराध्यः) और दुःख से चिंतने योग्य (नः) हम लोगों को (मा) मत (अव, क्रमुः) उल्लङ्घन करें (अशिवासः) दुःख देनेवाले हम लोगों को (मा) मत उल्लङ्घन करें जिससे (त्वया) तुम्हारे साथ (वयम्) हम लोग (प्रवतः) नीचे देशों को तथा (शश्वतीः) अनादिभूत (अपः) जलों को (अति, तरामसि) अतीव उतरें ॥२७॥
Connotation: - राजा और राजजन, सेना और सभाध्यक्ष ऐसी नावें रचें, जिनसे समुद्रों को सुख से सब तरें। उन समुद्रों में नौकाओं के चलानेवालों को मार्गविज्ञान यथार्थ हो ॥२७॥ इस सूक्त में इन्द्र, मेधावी, धन, विद्या की कामना करनेवाले, रक्षक, राजा, ईश्वर, जीव, धनसंचय फिर ईश्वर और नौकाओं के जानेवालों के गुण और कर्म का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बत्तीसवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः समुद्रादिकं केन तरेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे शूर ! नाऽज्ञाता वृजना दुराध्यो नोऽस्मान्माव क्रमुरशिवासोऽस्मान्माऽव क्रमुर्यतस्त्वया सह वयं प्रवतो देशाञ्शश्वतीरपोऽति तरामसि ॥२७॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अज्ञाताः) (वृजनाः) वृजन्ति येषु यैस्सह वा ते (दुराध्यः) दुःखेनाऽऽध्यातुं योग्यः (मा) (अशिवासः) असुखप्रदाः (अव) (क्रमुः) अवक्राम्यन्तु (त्वया) [त्वया] सह (वयम्) (प्रवतः) निम्नान् (शश्वतीः) अनादिभूताः (अपः) जलानि (अति) (शूर) निर्भय (तरामसि) उल्लङ्घेमहि ॥२७॥
Connotation: - राजा राजजनाः सेनाः सभाध्यक्षाश्चेदृशीर्नावो रचयेयुर्याभिस्समुद्रान् सुखेन सर्वे तरेयुस्तत्र समुद्रेषु नौचालकानां मार्गविज्ञानं यथार्थं स्यादिति ॥२७॥ अत्रेन्द्रमेधाविधनविद्याकामिरक्षकराजेश्वरजीवधनसंचयेश्वरनौयायिगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वात्रिंशत्तमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा, राजजन, सेना व सभाध्यक्ष यांनी अशा नावा तयार कराव्यात. ज्यामुळे समुद्रातून सर्वांनी सुखाने तरून जावे. समुद्रात नौका चालविणाऱ्यांना मार्गाचे यथार्थ ज्ञान असावे. ॥ २७ ॥