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अहा॒ यदि॑न्द्र सु॒दिना॑ व्यु॒च्छान्दधो॒ यत्के॒तुमु॑प॒मं स॒मत्सु॑। न्य१॒॑ग्निः सी॑द॒दसु॑रो॒ न होता॑ हुवा॒नो अत्र॑ सु॒भगा॑य दे॒वान् ॥३॥

English Transliteration

ahā yad indra sudinā vyucchān dadho yat ketum upamaṁ samatsu | ny agniḥ sīdad asuro na hotā huvāno atra subhagāya devān ||

Pad Path

अहा॑। यत्। इ॒न्द्र॒। सु॒ऽदिना॑। वि॒ऽउ॒च्छान्। दधः॑। यत्। के॒तुम्। उ॒प॒ऽमम्। स॒मत्ऽसु॑। नि। अ॒ग्निः। सी॒द॒त्। असु॑रः। न। होता॑। हु॒वा॒नः। अत्र॑। सु॒ऽभगा॑य। दे॒वान् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:30» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होता हुआ क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सूर्य के समान वर्त्तमान ! (अत्र) इन (समत्सु) संग्रामों में (यत्) जिन (देवान्) विद्वानों को (सुभगाय) सुन्दर ऐश्वर्य्य के लिये (असुरः) जो प्राणों में रमता है उस (होता) होम करनेवाले के (न) समान शत्रुओं को युद्ध की आग में (हुवानः) होमते अर्थात् उनको स्पर्द्धा से चाहते हुए (अग्निः) अग्नि के समान आप (नि, सीदत्) निरन्तर स्थिर होते हो और (यत्) जिस (उपमम्) उपमा दिलानेवाली (केतुम्) बुद्धि के विषय को (अहा) साधारण दिन वा (सुदिना) सुख करनेवाले दिनों दिन (व्युच्छान्) विविध प्रकार से बसाये हुए विद्वानों को संग्रामों में (दधः) धारण करो सो आप जीत सकते हो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। वही राजा जीतता है, जो उत्तम शूरवीर विद्वानों को अपनी सेना में सत्कार का रक्खे जैसे होम करनेवाली अग्नि में साकल्य होमता है, वैसे शस्त्र और अस्त्रों की अग्नि में शत्रुओं को होमे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशः सन् किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्रात्र समत्सु यद्यान् देवान् सुभगायाऽसुरो होता न शत्रून् युद्धाग्नौ हुवानः सन्नग्निरिव भवान्निसीदद्यदुपमं केतुं महा सुदिना व्युच्छाँश्च देवान् समत्सु दधः स त्वं विजेतुं शक्नोषि ॥३॥

Word-Meaning: - (अहा) अहानि दिनानि (यत्) यान् (इन्द्र) सूर्य इव वर्त्तमान (सुदिना) सुखकराणि दिनानि (व्युच्छान्) विवासितान् (दधः) देहि (यत्) यम् (केतुम्) प्रज्ञाम् (उपमम्) येन उपमिमीते तम् (समत्सु) संग्रामेषु (नि) नितराम् (अग्निः) पावक इव तेजस्वी (सीदत्) निषीदति (असुरः) योऽसुषु रमते सः (न) इव (होता) हवनकर्त्ता (हुवानः) स्पर्धमानः (अत्र) (सुभगाय) सुष्ठ्वैश्वर्याय (देवान्) विदुषः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। स एव राजा विजयते य उत्तमाञ्छूरवीरान्विदुषः स्वसेनायां सत्कृत्य रक्षेद्यथा होताऽग्नौ साकल्यं जुहोति तथा शस्त्राऽस्त्राग्नौ शत्रूञ्जुहुयात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जो आपल्या सेनेतील शूर विद्वानांचा सत्कार करतो तो राजा जिंकतो. जसे यज्ञातील अग्नीमध्ये साकल्य घातले जाते, तसे शस्त्रास्त्राग्नीमध्ये शत्रूंचा होम करावा. ॥ ३ ॥