Go To Mantra

यथा॑ वः॒ स्वाहा॒ग्नये॒ दाशे॑म॒ परीळा॑भिर्घृ॒तव॑द्भिश्च ह॒व्यैः। तेभि॑र्नो अग्ने॒ अमि॑तै॒र्महो॑भिः श॒तं पू॒र्भिराय॑सीभि॒र्नि पा॑हि ॥७॥

English Transliteration

yathā vaḥ svāhāgnaye dāśema parīḻābhir ghṛtavadbhiś ca havyaiḥ | tebhir no agne amitair mahobhiḥ śatam pūrbhir āyasībhir ni pāhi ||

Pad Path

यथा॑। वः॒। स्वाहा॑। अ॒ग्नये॑। दाशे॑म। परि॑। इळा॑भिः। घृ॒तव॑त्ऽभिः। च॒। ह॒व्यैः। तेभिः॑। नः॒। अ॒ग्ने॒। अमि॑तैः। महः॑ऽभिः। श॒तम्। पूः॒ऽभिः। आय॑सीभिः। नि। पा॒हि॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:3» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् लोगो ! (यथा) जैसे हम लोग (वः) तुम्हारे अर्थ (स्वाहा) सत्यक्रिया से (घृतवद्भिः) घृतादि से युक्त (हव्यैः) होम के योग्य पदार्थों (च) और (इळाभिः) अन्नों के साथ (अग्नये) अग्नि के लिये (शतम्) सैकड़ों प्रकार के हविष्यों को (परि, दाशेम) सब ओर से देवें, वैसे (अमितैः) असंख्य (महोभिः) बड़े-बड़े कर्मों वा पुरुषों और (तेभिः) उन (आयसीभिः) लोहे से बनी (पूर्भिः) नगरियों के साथ वर्त्तमान (नः) हम लोगों को हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी प्रकाशमान् राजन् ! (नि, पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे ऋत्विक् और यजमान लोग घृतादि से अग्नि को बढ़ाते हैं, वैसे ही राजा प्रजाओं को और प्रजाएँ राजा को न्याय विनयादि से बढ़ा के अपरिमित सुखों को प्राप्त होते हैं ॥७॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा वयं वः स्वाहा घृतवद्भिर्हव्यैरिळाभिश्चाग्नये शतं परिदाशेम तथाऽमितैर्महोभिस्तेभिरायसीभिः पूर्भिश्च सह वर्त्तमानान्नोऽस्मान् हे अग्ने ! नि पाहि ॥७॥

Word-Meaning: - (यथा) (वः) युष्मभ्यम् (स्वाहा) सत्यया क्रियया (अग्नये) पावकाय (दाशेम) दद्याम (परि) सर्वतः (इळाभिः) अग्नैः (घृतवद्भिः) घृतादियुक्तैः (च) (हव्यैः) होतुमर्हैः (तेभिः) (नः) अस्मान् (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान राजन् (अमितैः) असंख्यैः (महोभिः) महद्भिः कर्मभिः पुरुषैर्वा (शतम्) (पूर्भिः) नगरीभिः (आयसीभिः) अयसा निर्मिताभिः (नि) नितराम् (पाहि) रक्ष ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथर्त्विग्यजमाना घृतादिनाऽग्निं वर्धयन्ति तथैव राजा प्रजाः प्रजा राजानं च न्यायविनयादिभिर्वर्धयित्वाऽमितानि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥७॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे ऋत्विज व यजमान घृत इत्यादींनी अग्नीची वृद्धी करतात तसेच राजाने प्रजेला व प्रजेने राजाला न्याय व विनय इत्यादींनी वाढवून अपरिमित सुख द्यावे. ॥ ७ ॥