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च॒कार॒ ता कृ॒णव॑न्नू॒नम॒न्या यानि॑ ब्रु॒वन्ति॑ वे॒धसः॑ सु॒तेषु॑। जनी॑रिव॒ पति॒रेकः॑ समा॒नो नि मा॑मृजे॒ पुर॒ इन्द्रः॒ सु सर्वाः॑ ॥३॥

English Transliteration

cakāra tā kṛṇavan nūnam anyā yāni bruvanti vedhasaḥ suteṣu | janīr iva patir ekaḥ samāno ni māmṛje pura indraḥ su sarvāḥ ||

Pad Path

च॒कार॑। ता। कृ॒णव॑त्। नू॒नम्। अ॒न्या। यानि॑। ब्रु॒वन्ति॑। वे॒धसः॑। सु॒तेषु॑। जनीः॑ऽइव। पतिः॑। एकः॑। स॒मा॒नः। नि। म॒मृ॒जे॒। पुरः॑। इन्द्रः॑। सु। सर्वाः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:26» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जैसे (वेधसः) मेधावी जन (सुतेषु) उत्पन्न हुए विज्ञान और बलों में उपदेश करने योग्यों को (यानि) जिन उपदेश-वचनों को तथा (अन्या) और वचनों को (ब्रुवन्ति) कहते हैं (ता) उनको आप (नूनम्) निश्चित (कृणवत्) करें वा जैसे (समानः) पक्षपात रहित (पतिः) स्वामी राजा (एकः) अकेला (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (जनीरिव) उत्पन्न हुई प्रजा के समान (सु, सर्वाः) सम्यक् समस्त प्रजा को (पुरः) पहिले (नि, मामृजे) निरन्तर पवित्र करता है, वैसे इसको आप (चकार) करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! तुम विद्वानों के उपदेश के अनुकूल ही आचरण करो जैसे धार्मिक, जितेन्द्रिय, विद्वान् राजा पक्षपात छोड़ के अपनी प्रजा न्याय से रखता है, वैसे प्रजाजन इस राजा की निरन्तर रक्षा करें, ऐसे करने से निरन्तर सब को निश्चल सुखलाभ होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किंवत्किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा वेधसः सुतेषूपदेश्यान् यान्यन्या ब्रुवन्ति ता भवान्नूनं कृणवद्यथा समानः पतिरेक इन्द्रो जनीरिव सुसर्वाः प्रजाः पुरो नि मामृजे तथैतद्भवाञ्चकार ॥३॥

Word-Meaning: - (चकार) करोतु (ता) तानि (कृणवत्) कुर्यात् (नूनम्) निश्चितम् (अन्या) अन्यानि (यानि) उपदेशवचनानि (ब्रुवन्ति) उपदिशन्ति (वेधसः) मेधाविनः (सुतेषु) उत्पन्नेषु जातेषु विज्ञानबलेषु (जनीरिव) जायमानाः प्रजा इव (पतिः) स्वामी राजा (एकः) असहायः (समानः) पक्षपातरहितः (नि) नितराम् (मामृजे) मृजति शोधयति। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदीर्घः। (पुरः) पुरस्तात् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (सु सर्वाः) सम्यगखिलाः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यूयं विद्वदुपदिष्टानुकूलमेवाचरत यथा धार्मिको जितेन्द्रियो विद्वान् राजा पक्षपातं विहाय स्वाः प्रजा न्यायेन रक्षति तथा प्रजा अप्येनं सततं रक्षन्त्वेवं कृते सर्वेषां ध्रुवः सुखलाभो जायते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही विद्वानांच्या उपदेशानुसार आचरण करा. जसा धार्मिक जितेंद्रिय विद्वान राजा भेदभाव न करता आपल्या प्रजेला न्यायाने वागवितो तसे प्रजेनेही राजाचे निरंतर रक्षण करावे. असे वर्तन ठेवल्यास सर्वांना सदैव निश्चल सुख मिळते. ॥ ३ ॥