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उ॒क्थउ॑क्थे॒ सोम॒ इन्द्रं॑ ममाद नी॒थेनी॑थे म॒घवा॑नं सु॒तासः॑। यदीं॑ स॒बाधः॑ पि॒तरं॒ न पु॒त्राः स॑मा॒नद॑क्षा॒ अव॑से॒ हव॑न्ते ॥२॥

English Transliteration

uktha-ukthe soma indram mamāda nīthe-nīthe maghavānaṁ sutāsaḥ | yad īṁ sabādhaḥ pitaraṁ na putrāḥ samānadakṣā avase havante ||

Pad Path

उक्थेऽउ॑क्थे। सोमः॑। इन्द्र॑म्। म॒मा॒द॒। नी॒थेऽनी॑थे। म॒घऽवा॑नम्। सु॒तासः॑। यत्। ई॒म्। स॒ऽबाधः॑। पि॒तर॑म्। न। पु॒त्राः। स॒मा॒नऽद॑क्षाः। अव॑से। हव॑न्ते ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:26» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर किसके तुल्य कौन क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यत्) जो (ईम्) सब ओर से (सबाधः) पीड़ा के साथ वर्त्तमान (पितरम्) पिता को (समानदक्षाः) समान बल, विद्या और चतुरता जिनके विद्यमान वे (पुत्राः) पुत्र जन (न) जैसे (अवसे) रक्षा आदि के लिये (सुतासः) विद्या और ऐश्वर्य में प्रकट हुए (मघवानम्) धर्म कर्म बहुत धन जिसके उसको (हवन्ते) स्पर्द्धा करते वा ग्रहण करते हैं और जैसे (सोमः) बड़ी-बड़ी ओषधियों का रस वा ऐश्वर्य्य (उक्थे-उक्थे) धर्मयुक्त उपदेश करने योग्य व्यवहार तथा (नीथे-नीथे) पहुँचाने-पहुँचाने योग्य सत्य व्यवहार में (इन्द्रम्) जीवात्मा को (ममाद) हर्षित करता है, उनके साथ वैसा ही आचरण करो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो विद्यार्थी जन जैसे अच्छे पुत्र क्लेशयुक्त माता पिता को प्रीति से सेवते हैं, वैसे गुरु की सेवा करते हैं वा जैसे विद्या, विनय और पुरुषार्थों से उत्पन्न हुआ ऐश्वर्य उत्पन्न करनेवाले को आनन्दित करता है, वैसे तुम लोग वर्तो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः किंवत्कः किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यद्य ईं सबाधः पितरं समानदक्षाः पुत्रा नावसे सुतासो मघवानं हवन्ते यथा सोम उक्थउक्थे नीथेनीथ इन्द्रं ममाद तैस्तथा चरत ॥२॥

Word-Meaning: - (उक्थेउक्थे) धर्म्य उपदेष्टव्ये व्यवहारे व्यवहारे (सोमः) महौषधिरस ऐश्वर्यं वा (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (ममाद) हर्षयति (नीथेनीथे) प्रापणीये प्रापणीये सत्ये व्यवहारे (मघवानम्) धर्म्येण बहुजातधनम् (सुतासः) विद्यैश्वर्ये प्रादुर्भूताः (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (सबाधः) बाधसा सह वर्त्तमानम् (पितरम्) जनकम् (न) इव (पुत्राः) (समानदक्षाः) स्पर्धन्त आददति वा ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये विद्यार्थिनो यथा सत्पुत्राः क्लेशयुक्तौ मातापितरौ प्रीत्या सेवन्ते तथा गुरुं सेवन्ते यथा विद्याविनयपुरुषार्थजातमैश्वर्यं कर्त्तारमानन्दयति तथा यूयं वर्त्तध्वम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा, वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे चांगले पुत्र त्रस्त असणाऱ्या माता-पित्याशी प्रेमाने वागतात तसे विद्यार्थी गुरूची सेवा करतात. जसे निर्माणकर्त्याला विद्या विनय व पुरुषार्थाने उत्पन्न झालेले ऐश्वर्य आनंद देते तसे तुम्हीही वागा. ॥ २ ॥ े