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आ नो॑ दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन्नि॒दं ब॒र्हिः सो॑म॒पेया॑य याहि। वह॑न्तु त्वा॒ हर॑यो म॒द्र्य॑ञ्चमाङ्गू॒षमच्छा॑ त॒वसं॒ मदा॑य ॥३॥

English Transliteration

ā no diva ā pṛthivyā ṛjīṣinn idam barhiḥ somapeyāya yāhi | vahantu tvā harayo madryañcam āṅgūṣam acchā tavasam madāya ||

Pad Path

आ। नः॒। दि॒वः। आ। पृ॒थि॒व्याः। ऋ॒जी॒षि॒न्। इ॒दम्। ब॒र्हिः। सो॒म॒ऽपेया॑य। या॒हि॒। वह॑न्तु। त्वा॒। हर॑यः। म॒द्र्य॑ञ्चम्। आ॒ङ्गू॒षम्। अच्छ॑। त॒वस॑म्। मदा॑य ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:24» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या वर्त्त कर क्या पीना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ऋजीषिन्) सरल स्वभाववाले ! आप (सोमपेयाय) उत्तम ओषधियों के रस के पीने के लिये (दिवः) प्रकाश और (पृथिव्याः) भूमि से (नः) हमारे (इदम्) इस वर्त्तमान (बर्हिः) उत्तम स्थान वा अवकाश को (आ, याहि) आओ (मदाय) आनन्द के लिये (मद्र्यञ्चम्) मेरा सत्कार करते (आङ्गूषम्) और प्राप्त होते हुए (तवसम्) बलवान् (त्वाम्) आपको उत्तम ओषधियों के रस पीने के लिये (हरयः) हरणशील (अच्छ) अच्छे (आ, वहन्तु) पहुँचावें ॥३॥
Connotation: - वे ही नीरोग, शिष्ट, धार्मिक, चिरायु और परोपकारी हों, जो मद्यरूप और अच्छे प्रकार बुद्धि के नष्ट करनेवाले पदार्थ को छोड़ बल, बुद्धि आदि को बढ़ानेवाले सोम आदि बड़ी ओषधियों के रस के पीने को अपने वा आप्त के स्थान को जावें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं वर्त्तयित्वा किं पेयमित्याह ॥

Anvay:

हे ऋजीषिंस्त्वं सोमपेयाय दिवः पृथिव्याः न इदं बर्हिरायाहि मदाय मद्र्यञ्चमाङ्गूषं तवसं त्वा सोमपेयाय हरयोऽच्छा वहन्तु ॥३॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (दिवः) प्रकाशम् (आ) (पृथिव्याः) भूमेः (ऋजीषिन्) सरलस्वभाव (इदम्) वर्त्तमानम् (बर्हिः) उत्तमं स्थानमवकाशं वा (सोमपेयाय) उत्तमौषधिरसपानाय (याहि) आगच्छ (वहन्तु) प्रापयन्तु (त्वा) त्वाम् (हरयः) (मद्र्यञ्चम्) मामञ्चतम् (आङ्गूषम्) प्राप्नुवन्तम् (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (तवसम्) बलम् (मदाय) आनन्दाय ॥३॥
Connotation: - त एवारोगाः शिष्टा धार्मिका चिरायुषः परोपकारिणो भवेयुर्ये मद्यबुद्ध्यादिप्रलम्पकं विहाय बलबुद्ध्यादिवर्धकं सोमादिमहौषधिरसं पातुं सज्जनैः सह स्वाप्तस्थानं [वा] गच्छेयुः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे मद्य व बुद्धी नष्ट करणाऱ्या पदार्थांचा त्याग करून बल, बुद्धी वाढविणाऱ्या सोम वगैरे औषधींचे प्राशन करतात तेच निरोगी, सभ्य, धार्मिक, दीर्घायु व परोपकारी असतात. ॥ ३ ॥