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न या॒तव॑ इन्द्र जूजुवुर्नो॒ न वन्द॑ना शविष्ठ वे॒द्याभिः॑। स श॑र्धद॒र्यो विषु॑णस्य ज॒न्तोर्मा शि॒श्नदे॑वा॒ अपि॑ गुर्ऋ॒तं नः॑ ॥५॥

English Transliteration

na yātava indra jūjuvur no na vandanā śaviṣṭha vedyābhiḥ | sa śardhad aryo viṣuṇasya jantor mā śiśnadevā api gur ṛtaṁ naḥ ||

Pad Path

न। या॒तवः॑। इ॒न्द्र॒। जू॒जु॒वुः॒। नः॒। न। वन्द॑ना। श॒वि॒ष्ठ॒। वे॒द्याभिः॑। सः। श॒र्ध॒त्। अ॒र्यः। विषु॑णस्य। ज॒न्तोः। मा। शि॒श्नऽदे॑वाः। अपि॑। गुः॒। ऋ॒तम्। नः॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:21» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब कौन तिरस्कार करने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शविष्ठ) अत्यन्त बलयुक्त (इन्द्र) दुष्ट शत्रुजनों के विदीर्ण करनेवाले जन ! जैसे (यातवः) संग्राम को जानेवाले (नः) हम लोगों को (न) न (जूजुवुः) प्राप्त होते हैं और जो (शिश्नदेवाः) शिश्न अर्थात् उपस्थ इन्द्रिय से विहार करनेवाले ब्रह्मचर्य्यरहित कामी जन हैं वे (ऋतम्) सत्यधर्म को (मा, गुः) मत पहुँचें (अपि) और (नः) हम लोगों को (न) न प्राप्त हों वे ही (विषुणस्य) शरीर में व्याप्त (जन्तोः) जीव को (वेद्याभिः) जानने योग्य नीतियों से (वन्दना) स्तुति करने योग्य कर्मों को न पहुँचे और (यः) जो (अर्यः) स्वामी जन शरीर में व्याप्त जीव को (शर्धत्) उत्साहित करे (सः) वह हम को प्राप्त हो ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो कामी लंपट जन हों, वे तुम लोगों को कदापि वन्दना करने योग्य नहीं, वे हम लोगों को कभी न प्राप्त हों, इसको तुम लोग जानो और जो धर्मात्मा जन हैं, वे वन्दना करने तथा सेवा करने योग्य हैं, कामातुरों को धर्मज्ञान और सत्यविद्या कभी नहीं होती है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ के तिरस्करणीयः सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे शविष्ठेन्द्र ! यथा यातवो नो न जूजुवुर्ये शिश्नदेवास्त ऋतं मा गुरपि च नोऽस्मान्न प्राप्नुवन्तु ते च विषुणस्य जन्तोर्वेद्याभिर्वन्दना मा गुर्योऽर्यो विषुणस्य जन्तोः शर्धन्त्सोऽस्मान्प्राप्नोतु ॥५॥

Word-Meaning: - (न) (यातवः) सङ्ग्रामं ये यान्ति ते (इन्द्र) दुष्टशत्रुविदारक (जूजुवुः) सद्यो गच्छन्ति (नः) अस्मान् (न) निषेधे (वन्दना) वन्दनानि स्तुत्यानि कर्माणि (शविष्ठ) अतिशयेन बलयुक्त (वेद्याभिः) ज्ञातव्याभिर्नीतिभिः (सः) (शर्धत्) उत्सहेत् (अर्यः) स्वामी (विषुणस्य) शरीरे व्याप्तस्य (जन्तोः) जीवस्य (मा) (शिश्नदेवाः) अब्रह्मचर्या कामिनो ये शिश्नेन दीव्यन्ति क्रीडन्ति ते (अपि) (गुः) प्राप्नुयुः (ऋतम्) सत्यं धर्मम् (नः) अस्मान् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये कामिनो लम्पटा स्युस्ते युष्माभिः कदापि न वन्दनीयास्तेऽस्मान् कदाचिन्माप्नुवन्त्विति मन्यध्वम्। ये च धर्मात्मानस्ते वन्दनीयाः सेवनीयाः सन्ति कामातुराणां धर्मज्ञानं सत्यविद्या च कदाचिन्न जायते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे कामी, लंपट लोक असतील त्यांना कधीही नमन करू नये. ते आपल्याजवळ नसावेत हे जाणा. जे धार्मिक लोक असतात ते वंदन करण्यायोग्य असतात व सेवा करण्यायोग्य असतात. कामातुर लोक धर्मज्ञान व सत्यविद्या कधी जाणू शकत नाहीत. ॥ ५ ॥