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ए॒ष स्तोमो॑ अचिक्रद॒द्वृषा॑ त उ॒त स्ता॒मुर्म॑घवन्नक्रपिष्ट। रा॒यस्कामो॑ जरि॒तारं॑ त॒ आग॒न्त्वम॒ङ्ग श॑क्र॒ वस्व॒ आ श॑को नः ॥९॥

English Transliteration

eṣa stomo acikradad vṛṣā ta uta stāmur maghavann akrapiṣṭa | rāyas kāmo jaritāraṁ ta āgan tvam aṅga śakra vasva ā śako naḥ ||

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Pad Path

ए॒षः। स्तोमः॑। अ॒चि॒क्र॒द॒त्। वृषा॑। ते॒। उ॒त। स्ता॒मुः। म॒घ॒ऽव॒न्। अ॒क्र॒पि॒ष्ट॒। रा॒यः। कामः॑। ज॒रि॒तार॑म्। ते॒। आ। अ॒ग॒न्। त्वम्। अ॒ङ्ग। श॒क्र॒। वस्वः॑। आ। श॒कः॒। नः॒ ॥९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:20» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करके किसको प्राप्त हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शक्र) शक्तिमान् (अङ्ग) मित्र पुरुषार्थी राजन् ! जो (एषः) यह (ते) आपका (स्तोमः) प्रशंसा करने योग्य (उत) और (वृषा) बलिष्ठ जन (अचिक्रदत्) बुलावे वा हे (मघवन्) बहुत धनयुक्त ! (स्तामुः) स्तुति करनेवाला जन (अक्रपिष्ट) समर्थ होता है वा (ते) तुम्हारे लिये जो (रायः) धन की (कामः) कामना करनेवाला (जरितारम्) स्तुति करनेवाले आपको (आ, अगन्) सब ओर से प्राप्त हो वह (त्वम्) आप (नः) हमारे (वस्वः) धनों को (आ, शकः) सब ओर से सह सको ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम जो शक्ति को बढ़ा कर धर्म कर्म से ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति की अभिलाषा बढ़ाओ तो तुमको पुष्कल ऐश्वर्य प्राप्त हो ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कृत्वा किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

Anvay:

हे शक्राऽङ्ग पुरुषार्थि राजन् ! य एष ते स्तोम उत वृषाऽचिक्रदत्। हे मघवँस्तामुरक्रपिष्ट ते यो रायस्कामो जरितारं त्वामागन् स त्वं नो वस्व आशकः ॥९॥

Word-Meaning: - (एषः) (स्तोमः) प्रशंसनीयः (अचिक्रदत्) आह्वयेत् (वृषा) बलिष्ठः (ते) तव (उत) (स्तामुः) स्तावकः (मघवन्) बहुधनयुक्त (अक्रपिष्ट) कल्पते (रायः) श्रियः (कामः) कामनामभिलाषां कुर्व्वाणः (जरितारम्) स्तोतारम् (ते) तुभ्यम् (आ) (अगन्) समन्तात्प्राप्नोतु (त्वम्) (अङ्ग) सखे (शक्र) शक्तिमन् (वस्वः) धनानि (आ) (शकः) समन्ताच्छक्नुहि (नः) अस्मान् ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं यदि शक्तिं वर्धयित्वा धर्म्येण कर्मेणैश्वर्यादिप्राप्तेरभिलाषां वर्धयेयुस्तर्हि युष्मान् पुष्कलमैश्वर्यं प्राप्नुयात् ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! तुम्ही शक्ती वाढवून धर्म कर्माने ऐश्वर्य प्राप्ती इत्यादीची अभिलाषा वाढवा. त्यामुळे तुम्हाला पुष्कळ ऐश्वर्य प्राप्त होईल. ॥ ९ ॥