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वृषा॑ जजान॒ वृष॑णं॒ रणा॑य॒ तमु॑ चि॒न्नारी॒ नर्यं॑ सुसूव। प्र यः से॑ना॒नीरध॒ नृभ्यो॒ अस्ती॒नः सत्वा॑ ग॒वेष॑णः॒ स धृ॒ष्णुः ॥५॥

English Transliteration

vṛṣā jajāna vṛṣaṇaṁ raṇāya tam u cin nārī naryaṁ sasūva | pra yaḥ senānīr adha nṛbhyo astīnaḥ satvā gaveṣaṇaḥ sa dhṛṣṇuḥ ||

Pad Path

वृषा॑। ज॒जा॒न॒। वृष॑णम्। रणा॑य। तम्। ऊँ॒ इति॑। चि॒त्। नारी॑। नर्य॑म्। सु॒सू॒व॒। प्र। यः। से॒ना॒ऽनीः। अध॑। नृऽभ्यः॑। अस्ति॑। इ॒नः। सत्वा॑। गो॒ऽएष॑णः। सः। धृ॒ष्णुः ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:20» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उत्पन्न हुआ मनुष्य कैसा होकर सामर्थ्यवान् होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यः) जो (वृषा) वर्षा करने (सेनानीः) सेना को पहुँचाने (सत्वा) बलवान् (गवेषणः) और उत्तम वाणी विद्या का ढूँढनेवाला (नृभ्यः) सेना नायकों से (धृष्णुः) धृष्ट प्रगल्भ (जजान) उत्पन्न हो (सः) वह (इनः) ईश्वर के समान (रणाय) संग्राम के लिये प्रतापी (अस्ति) है (अध) इसके अनन्तर जिस (उ) ही (नर्यम्) मनुष्यों में (वृषणम्) बलिष्ठ योद्धा पुत्र को वर्षा करनेवाला पुरुष और (नारी) स्त्री (प्र, सुसूव) उत्पन्न करते हैं (तम्, चित्) उसी को जन न्यायकारी मानते हैं ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिसको स्त्रीपुरुष दीर्घ ब्रह्मचर्य्य का सेवन कर उत्पन्न करते हैं, वह पुरुष जगदीश्वरवत् सब को न्याय से पालने को समर्थ होकर सेनाधिप हुआ शत्रुओं के जीतने को सदा समर्थ होता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उत्पन्नो मनुष्यः कीदृशो भृत्वा शक्तिमाञ्जायत इत्याह ॥

Anvay:

यो वृषा सेनानीः सत्वा गवेषणो नृभ्यो धृष्णुर्जजान स इन इव रणाय प्रताप्यस्ति अध यमु नर्यं वृषणं वृषा नारी च प्र सुसूव तं चिज्जना न्यायकारिणं मन्यन्ते ॥५॥

Word-Meaning: - (वृषा) वर्षकः (जजान) जनयेत् (वृषणम्) बलिष्ठं योद्धारम् (रणाय) सङ्ग्रामाय (तम्) (उ) (चित्) (नारी) नरस्य स्त्री (नर्यम्) नृषु बलिष्ठम् (सुसूव) जनयति (प्र) (यः) (सेनानीः) यः सेनां नयति सः (अध) अनन्तरम् (नृभ्यः) सेनानायकेभ्यः (अस्ति) (इनः) ईश्वर इव (सत्वा) बलवान् (गवेषणः) उत्तमवाग्विद्यान्वेषी (सः) (धृष्णुः) धृष्टः प्रगल्भः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यं स्त्रीपुरुषौ दीर्घं ब्रह्मचर्यं संसेव्य जनयतः स पुरुषो जगदीश्वरवत्सर्वान् न्यायेन पालयितुं शक्तो भूत्वा सेनाऽधिपः शत्रून्विजेतुं सदा प्रभुर्भवति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे स्त्री-पुरुष दीर्घ ब्रह्मचर्य पालन करून ज्या पुरुषाला उत्पन्न करतात तो जगदीश्वराप्रमाणे सर्वांचे न्यायाने पालन करण्यास समर्थ होतो व सेनापती बनून शत्रूंना जिंकण्यास सदैव समर्थ असतो. ॥ ५ ॥