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उ॒भे चि॑दिन्द्र॒ रोद॑सी महि॒त्वाऽप॑प्राथ॒ तवि॑षीभिस्तुविष्मः। नि वज्र॒मिन्द्रो॒ हरि॑वा॒न्मिमि॑क्ष॒न्त्समन्ध॑सा॒ मदे॑षु॒ वा उ॑वोच ॥४॥

English Transliteration

ubhe cid indra rodasī mahitvā paprātha taviṣībhis tuviṣmaḥ | ni vajram indro harivān mimikṣan sam andhasā madeṣu vā uvoca ||

Pad Path

उ॒भे इति॑। चि॒त्। इ॒न्द्र॒। रोद॑सी॒ इति॑। म॒हि॒ऽत्वा। आ। प॒प्रा॒थ॒। तवि॑षीभिः। तु॒वि॒ष्मः॒। नि। वज्र॑म्। इन्द्रः॑। हरि॑ऽवान्। मिमि॑क्षन्। सम्। अन्ध॑सा। मदे॑षु। वै। उ॒वो॒च॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:20» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सूर्य के समान वर्त्तमान राजा ! आप (उभे) दो (रोदसी) आकाश और पृथिवी (चित्) के समान (महित्वा) सत्कार पाके (तविषीभिः) बलिष्ठ सेनाओं से (आ, पप्राथ) निरन्तर व्याप्त होता और (तुविष्मः) बहुत बलयुक्त होता हुआ (हरिवान्) बहुत मनुष्यों से युक्त (अन्धसा) अन्नादि पदार्थ से (सम्, नि, मिमिक्षन्) प्रसिद्ध सुखों से निरन्तर सींचने की इच्छा करता हुआ (वज्रम्) शस्त्र अस्त्रों को धारण कर जो (इन्द्रः) वीर पुरुष राजा (मदेषु) आनन्दों के निमित्त (उवाच) कहे (वै) वही राज्य करने को योग्य हो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे भूमि और सूर्य बड़प्पन से सब को व्याप्त होकर जल और अन्न से सब को और गीले किये हुए जगत् को सुखी करते हैं, वैसे ही राजा विद्या और विनय से सत्य का उपदेश कर सब प्रजाजनों की निरन्तर उन्नति करे ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वमुभे रोदसी चिदिव महित्वा तविषीभिरा पप्राथ तुविष्मः सन् हरिवानन्धसा संनिमिमिक्षन् वज्रं धृत्वा य इन्द्रो मदेषूवोच स वै राज्यं कर्त्तुमर्हेत् ॥४॥

Word-Meaning: - (उभे) द्वे (चित्) इव (इन्द्र) सूर्यवद्राजन् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (महित्वा) सत्कारं प्राप्य (आ) समन्तात् (पप्राथ) प्रति व्याप्नोति (तविषीभिः) बलिष्ठाभिः सेनाभिः (तुविष्मः) बहुबलयुक्तः (नि) (वज्रम्) शस्त्रास्त्रम् (इन्द्रः) वीरपुरुषराजा (हरिवान्) बहुमनुष्ययुक्तः (मिमिक्षन्) सुखैः सेक्तुमिच्छन् (सम्) (अन्धसा) अन्नादिना (मदेषु) आनन्देषु (वै) निश्चयेन (उवोच) उच्यात् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यथा भूमिसूर्यौ महत्त्वेन सर्वानभि व्याप्य जलान्नाभ्यां सर्वानार्द्रीकृतं जगत्सुखयतस्तथैव राजा विद्याविनयाभ्यां सत्यमुपदिश्य सर्वाः प्रजाः सततमुन्नयेत् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे भूमी व सूर्य आपल्या महिम्याने सर्वांना पूर्ण रीतीने व्याप्त करून जल व अन्नाने सर्वांना तृप्त करून जगाला सुखी करतात तसेच राजाने विद्या व विनयाने सत्याचा उपदेश करून सर्व प्रजाजनांची निरंतर उन्नती करावी. ॥ ४ ॥