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विप्रा॑ य॒ज्ञेषु॒ मानु॑षेषु का॒रू मन्ये॑ वां जा॒तवे॑दसा॒ यज॑ध्यै। ऊ॒र्ध्वं नो॑ अध्व॒रं कृ॑तं॒ हवे॑षु॒ ता दे॒वेषु॑ वनथो॒ वार्या॑णि ॥७॥

English Transliteration

viprā yajñeṣu mānuṣeṣu kārū manye vāṁ jātavedasā yajadhyai | ūrdhvaṁ no adhvaraṁ kṛtaṁ haveṣu tā deveṣu vanatho vāryāṇi ||

Pad Path

विप्रा॑। य॒ज्ञेषु॑। मानु॑षेषु। का॒रू इति॑। मन्ये॑। वा॒म्। जा॒तऽवे॑दसा। यज॑ध्यै। ऊ॒र्ध्वम्। नः॒। अ॒ध्व॒रम्। कृ॒त॒म्। हवे॑षु। ता। दे॒वेषु॑। व॒न॒थः॒। वार्या॑णि ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:2» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे स्त्री-पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्रीपुरुषो ! जो (मानुषेषु) मनुष्यसम्बन्धी (यज्ञेषु) सत्कर्मों में (कारू) वा शिल्पविद्या में कुशल वा पुरुषार्थी (जातवेदसा) विद्या को प्रसिद्ध प्राप्त हुए (विप्रा) बुद्धिमान् तुम दोनों (नः) हमारे (हवेषु) जिन में ग्रहण करते उन घरों में (अध्वरम्) रक्षा करने योग्य गृहाश्रमादि के व्यवहार को (ऊर्ध्वम्) उन्नत (कृतम्) करो (देवेषु) दिव्य गुणों वा विद्वानों में (वार्याणि) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को (वनथः) सम्यक् सेवन करो (ता) वे (वाम्) तुम दोनों (यजध्यै) सङ्ग करने के अर्थ मैं (मन्ये) मानता, वैसे तुम दोनों मुझ को मानो ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे ब्रह्मचर्यसेवन से विद्या को प्राप्त हुए क्रिया में कुशल विद्वान् स्त्रीपुरुष सब घर के कामों को शोभित करने को समर्थ होते हैं और वे सङ्ग करने योग्य होते हैं, वैसे तुम लोग भी होओ ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ दम्पती कीदृशौ भवेतामित्याह ॥

Anvay:

हे स्त्रीपुरुषौ ! यौ मानुषेषु यज्ञेषु कारू जातवेदसा विप्रा युवां नो हवेष्वध्वरमूर्ध्वं कृतं देवेषु वार्याणि वनथस्तावां यजध्या अहं मन्ये तथा युवां मां मन्येथाम् ॥७॥

Word-Meaning: - (विप्रा) विप्रौ मेधाविनौ स्त्रीपुरुषौ (यज्ञेषु) सत्सु कर्मसु (मानुषेषु) मनुष्यसम्बन्धिषु (कारू) शिल्पविद्याकुशलौ पुरुषार्थिनौ (मन्ये) (वाम्) युवाम् (जातवेदसा) प्राप्तप्रकटविद्यौ (यजध्यै) सङ्गन्तुम् (ऊर्ध्वम्) उत्कृष्टम् (नः) अस्माकम् (अध्वरम्) अहिंसनीयं गृहाश्रमादिव्यवहारम् (कृतम्) कुरुतम् (हवेषु) गृह्णन्ति येषु पदार्थेषु (ता) तौ (देवेषु) दिव्यगुणेषु विद्वत्सु वा (वनथः) संविभजथः (वार्याणि) वर्त्तुमर्हाणि ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा कृतब्रह्मचर्यविद्यौ क्रियाकुशलौ विद्वांसौ स्त्रीपुरुषौ सर्वाणि गृहकृत्यान्यलङ्कर्तुं शक्नुतस्तौ सङ्गन्तुं योग्यौ भवतस्तथा यूयमपि भवत ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे ब्रह्मचर्य सेवनाने विद्या प्राप्त करून क्रियाकुशल विद्वान स्त्री-पुरुष घरातील सर्व काम शोभून दिसेल असे करतात व संगती करण्यायोग्य असतात, तसे तुम्हीही व्हा. ॥ ७ ॥