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तव॑ च्यौ॒त्नानि॑ वज्रहस्त॒ तानि॒ नव॒ यत्पुरो॑ नव॒तिं च॑ स॒द्यः। नि॒वेश॑ने शतत॒मावि॑वेषी॒रह॑ञ्च वृ॒त्रं नमु॑चिमु॒ताह॑न् ॥५॥

English Transliteration

tava cyautnāni vajrahasta tāni nava yat puro navatiṁ ca sadyaḥ | niveśane śatatamāviveṣīr ahañ ca vṛtraṁ namucim utāhan ||

Pad Path

तव॑। च्यौ॒त्नानि॑। व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒। तानि॑। नव॑। यत्। पुरः॑। न॒व॒तिम्। च॒। स॒द्यः। नि॒ऽवेश॑ने। श॒त॒ऽत॒मा। अ॒वि॒वे॒षीः॒। अह॑न्। च॒। वृ॒त्रम्। नमु॑चिम्। उ॒त। अ॒ह॒न् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:19» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा के सेनाजन कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वज्रहस्त) हाथ में वज्र रखनेवाले ! जैसे (तव) आपके (तानि) वे (च्यौत्नानि) बल हैं अर्थात् सूर्य (यत्) जो (नवनवतिम्) निन्यानवे (पुरः) मेघरूपी शत्रुओं की नगरी उनको (सद्यः) शीघ्र (अहन्) हनता (च) और (निवेशने) जिसमें निवास करते हैं उस स्थान में (शततमा) अतीव सैकड़ों को (उत) और (नमुचिम्) जो अपने रूप को नहीं छोड़ता उस (वृत्रम्) आच्छादन करनेवाले मेघ को (च) भी (अहन्) मारता, वैसे आप (अविवेषीः) व्याप्त हूजिये अर्थात् सेना जनों को प्राप्त होकर शत्रुबलों को प्राप्त हूजिये ॥५॥
Connotation: - हे राजन् ! जैसे सूर्य असंख्य मेघ की नगरियों के समान सघन घन घटाघूम बादलों को हनता है, वैसे तुम्हारे सेना जन उत्तम होकर समस्त शत्रुओं को मारें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राज्ञः सैन्यानि कीदृशानि भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे वज्रहस्त ! यथा तव तानि च्यौत्नानि सूर्यो यन्नवनवतिं पुरः सद्योऽहँश्च निवेशने शततमा असंख्यान्युतापि नमुचिं वृत्रं चाऽहंस्तथा त्वमविवेषीः सैन्यानि प्राप्य शत्रुबलान्यविवेषीः ॥५॥

Word-Meaning: - (तव) (च्यौत्नानि) च्यवन्ति शत्रवो येभ्यस्तानि बलानि। च्यौत्नमिति बलनाम। (निघं०२.९)। (वज्रहस्त) (तानि) (नव) (यत्) याः (पुरः) शत्रूणां नगर्यः (नवतिम्) एतत्संख्याताः (च) (सद्यः) (निवेशने) निविशन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (शततमा) अतिशयेन शतानि (अविवेषीः) व्याप्नुयाः (अहन्) हन्ति (च) (वृत्रम्) आवरकं मेघम् (नमुचिम्) यः स्वस्वरूपं न मुञ्चति तम् (उत) अपि (अहन्) हन्ति ॥५॥
Connotation: - हे राजन् ! यथा सूर्योऽसंख्यानि मेघस्य नगराणीवाब्दलानि घनाकाराणि हन्ति तथा तवोत्तमानि सैन्यानि भूत्वा सर्वान् दुष्टाञ्छत्रून् घ्नन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जसा सूर्य असंख्य मेघाच्या नगरी असलेल्या सघन मेघांचा नाश करतो तशी तुझी सेना उत्तम बनावी व तिने शत्रूंना मारावे. ॥ ५ ॥