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ई॒युरर्थं॒ न न्य॒र्थं परु॑ष्णीमा॒शुश्च॒नेद॑भिपि॒त्वं ज॑गाम। सु॒दास॒ इन्द्रः॑ सु॒तुकाँ॑ अ॒मित्रा॒नर॑न्धय॒न्मानु॑षे॒ वध्रि॑वाचः ॥९॥

English Transliteration

īyur arthaṁ na nyartham paruṣṇīm āśuś caned abhipitvaṁ jagāma | sudāsa indraḥ sutukām̐ amitrān arandhayan mānuṣe vadhrivācaḥ ||

Pad Path

ई॒युः। अर्थ॑म्। न। नि॒ऽअ॒र्थम्। परु॑ष्णीम्। आ॒शुः। च॒न। इत्। आ॒भि॒ऽपि॒त्वम्। ज॒गा॒म॒। सु॒ऽदासे॑। इन्द्रः॑। सु॒ऽतुका॑न्। अ॒मित्रा॑न्। अर॑न्धयत्। मानु॑षे। वध्रि॑ऽवाचः ॥९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जैसे (सुदासः) सुन्दर दान जिसके विद्यमान वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (अर्थम्) द्रव्य के (न) समान (न्यर्थम्) निश्चित अर्थवाले को (आशुः) शीघ्रकारी होता हुआ (परुष्णीम्) पालना करनेवाली नीति को (चन) भी (अभिपित्वम्) और प्राप्त होने योग्य पदार्थ को (जगाम) प्राप्त होता है (अमित्रान्) मित्रता रहित अर्थात् शत्रुओं को (अरन्धयत्) नष्ट करे और (मानुषे) मनुष्यों के इस संग्राम में (वध्रिवाचः) जिनकी वृद्धि देनेवाली वाणी वे (सुतुकान्) सुन्दर जिनके सन्तान है उनकी रक्षा करते हैं और भी मनुष्य (इत्) उसको (ईयुः) प्राप्त हों ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजजनो ! जैसे न्यायाधीश राजा न्याय से प्राप्त पदार्थ को लेता और अन्याय से उत्पन्न हुए पदार्थ को छोड़ता तथा श्रेष्ठों की सम्यक् रक्षा कर दुष्टों को दण्ड देता है, वही उत्तम होता है ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

यथा सुदास इन्द्रोऽर्थं न न्यर्थमाशुः सन् परुष्णीं चनाऽभिपित्वं जगामाऽमित्रानरन्धयन्मानुषे वध्रिवाचः सुतुकान् रक्षन्ति तथेतरेऽपि मनुष्यास्तदिदीयुः ॥९॥

Word-Meaning: - (ईयुः) प्राप्नुयुः (अर्थम्) द्रव्यम् (न) इव (न्यर्थम्) निश्चितोऽर्थो यस्मिँस्तम् (परुष्णीम्) पालिकां नीतिम् (आशुः) सद्यः (चन) अपि (इत्) एव (अभिपित्वम्) प्राप्यम् (जगाम) (सुदासः) शोभनानि दानानि यस्य सः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (सुतुकान्) शोभनानि तुकान्यपत्यानि येषां तान् (अमित्रान्) मित्रतारहितान् (अरन्धयत्) हिंस्यात् (मानुषे) मनुष्याणामस्मिन् सङ्ग्रामे (वध्रिवाचः) वध्रयो वर्धिका वाचो येषां ते ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजजना ! यथा न्यायाधीशो राजा न्यायेन प्राप्तं गृह्णात्यन्यायजन्यं त्यजति श्रेष्ठान् संरक्ष्य दुष्टान् दण्डयति स एवोत्तमो भवति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजजनांनो! जसा न्यायाधीश राजा न्यायाने प्राप्त होणारे पदार्थ घेतो व अन्यायाने प्राप्त होणाऱ्या पदार्थांचा त्याग करतो, श्रेष्ठांचे रक्षण करून दुष्टांना दंड देतो तोच उत्तम असतो. ॥ ९ ॥