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धे॒नुं न त्वा॑ सू॒यव॑से॒ दुदु॑क्ष॒न्नुप॒ ब्रह्मा॑णि ससृजे॒ वसि॑ष्ठः। त्वामिन्मे॒ गोप॑तिं॒ विश्व॑ आ॒हा न॒ इन्द्रः॑ सुम॒तिं ग॒न्त्वच्छ॑ ॥४॥

English Transliteration

dhenuṁ na tvā sūyavase dudukṣann upa brahmāṇi sasṛje vasiṣṭhaḥ | tvām in me gopatiṁ viśva āhā na indraḥ sumatiṁ gantv accha ||

Pad Path

धे॒नुम्। न। त्वा॒। सु॒ऽयव॑से। दुधु॑क्षन्। उप॑। ब्रह्मा॑णि। स॒सृ॒जे॒। वसि॑ष्ठः। त्वाम्। इत्। मे॒। गोऽप॑तिम्। विश्वः॑। आ॒ह॒। आ। नः॒। इन्द्रः॑। सु॒ऽम॒तिम्। ग॒न्तु॒। अच्छ॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

राजा सर्वसम्मति से राजशासन करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जो (वसिष्ठः) अतीव धन (सूयवसे) सुन्दर भक्षण करने योग्य घास के निमित्त (धेनुम्) गौ की (न) जैसे वैसे (त्वा) तुम्हें (दुदुक्षन्) कामों से परिपूर्ण करता हुआ (ब्रह्माणि) बहुत अन्न वा धनों को (उप, ससृजे) सिद्ध करता है (मे) मेरी (गोपतिम्) इन्द्रियों की पालना करनेवाले (त्वाम्) तुम्हें (विश्वः) सब जन जो (आह) कहे (इत्) उसी (नः) हमारी (सुमतिम्) सुन्दर मति को (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्त राजा आप (अच्छ, आ, गन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । यदि आप हम लोगों को विद्वानों की सम्मति में वर्त्तकर राज्यशासन करें वा जो कोई प्रजा जन स्वकीय सुख दुःख प्रकाश करनेवाले वचन को सुनावे, उस सब को सुन कर यथावत् समाधान दें तो आप को सब हम लोग गौ दूध से जैसे, वैसे राज्यैश्वर्य से उन्नत करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

राजा सर्वसम्मत्या राजशासनं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यो वसिष्ठः सूयवसे धेनुं न त्वा दुदुक्षन् ब्रह्माण्युप ससृजे मे गोपतिं त्वां विश्वो जनो यदाहतामिन्नः सुमतिमिन्द्रो भवानच्छा गन्तु ॥४॥

Word-Meaning: - (धेनुम्) दुग्धदात्री गौः (न) इव (त्वा) त्वाम् (सूयवसे) शोभने भक्षणीये घासे। अत्रान्येषामपीत्याद्यचो दीर्घः। (दुदुक्षन्) कामान् प्रपूरयन् (उप) (ब्रह्माणि) महान्त्यन्नानि धनानि वा (ससृजे) सृजति (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुः (त्वाम्) (इत्) (मे) मम (गोपतिम्) गवां पालकम् (विश्वः) सर्वो जनः (आह) ब्रूयात् (आ) (नः) अस्माकम् (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तो राजा (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (गन्तु) गच्छतु प्राप्नोतु (अच्छ) सम्यक् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! यदि भवानस्माकं विदुषां सम्मतौ वर्तित्वा राज्यशासनं कुर्याद्यः कश्चित्प्रजाजनः स्वकीयं सुखदुःखप्रकाशकं वचः श्रावयेत्तत्सर्वं श्रुत्वा यथावत्समादध्यात्तर्हि भवन्तं सर्वे वयं गौर्दुग्धेनेव राज्यैश्वर्येणोन्नतं कुर्याम ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जर तू विद्वानांच्या संमतीने वागून आमच्यावर राज्य केलेस किंवा जर कोणी प्रजाजन स्वकीयांचे सुख-दुःख ऐकवतील तर ते ऐकून यथावत उत्तर दिलेस तर गाय जशी दुधाने समृद्ध करते तसे आम्ही सर्व लोक तुला राज्यैश्वर्याने उन्नत करू. ॥ ४ ॥