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द्वे नप्तु॑र्दे॒वव॑तः श॒ते गोर्द्वा रथा॑ व॒धूम॑न्ता सु॒दासः॑। अर्ह॑न्नग्ने पैजव॒नस्य॒ दानं॒ होते॑व॒ सद्म॒ पर्ये॑मि॒ रेभ॑न् ॥२२॥

English Transliteration

dve naptur devavataḥ śate gor dvā rathā vadhūmantā sudāsaḥ | arhann agne paijavanasya dānaṁ hoteva sadma pary emi rebhan ||

Pad Path

द्वे इति॑। नप्तुः॑। दे॒वऽव॑तः। श॒ते इति॑। गोः। द्वा। रथा॑। व॒धूऽम॑न्ता। सु॒ऽदासः॑। अर्ह॑न्। अ॒ग्ने॒। पै॒ज॒ऽव॒नस्य॑। दान॑म्। होता॑ऽइव। सद्म॑। परि॑। ए॒मि॒। रेभ॑न् ॥२२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा किसके तुल्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे (अर्हन्) सत्कार करता हुआ (सुदासः) उत्तम दानशील मैं (दानम्) दान (होतेव) देनेवाले के समान (सद्म) घर को वा (पैजनवस्य) वेगवान् (नप्तुः) पौत्र के स्थान को (पर्येमि) सब ओर से जाता हूँ और (देववतः) प्रशंसित गुणवाले विद्वानों से युक्त की (गोः) धेनु वा भूमिसम्बन्धी (द्वे) दो (शते) सौ (वधूमन्ता) प्रशंसायुक्त वधूवाले (द्वा) दो (रथा) जल-स्थल में जानेवाले रथों को सब ओर से प्राप्त होता हूँ वा जैसे विद्वान् जन (रेभन्) स्तुति करते हैं, उनको सब ओर से जाता हूँ, वैसे आप हूजिये ॥२२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जैसे देनेवाले उत्तम दान देते और पौत्रपर्य्यन्त धनधान्य और पशु आदि की समृद्धि करते हैं, वैसे सब को वर्त्तना चाहिये ॥२२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्स राजा किंवत्किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथार्हन् सुदासोऽहं दानं होतेव सद्म पैजवनस्य नप्तुः सद्म पर्येमि देववतो गोर्द्वे शते वधूमन्ता द्वा रथा पर्येमि यथा विद्वांसो रेभँस्तान् पर्य्येमि तथा त्वं भव ॥२२॥

Word-Meaning: - (द्वे) (नप्तुः) पौत्रस्य (देववतः) प्रशस्तगुणविद्वद्युक्तस्य (शते) (गोः) धेनोर्भूमेर्वा (द्वा) द्वौ (रथा) जलस्थलान्तरिक्षेषु गमयितारौ (वधूमन्ता) प्रशस्ते वध्वौ विद्येते ययोस्तौ (सुदासः) उत्तमदानः (अर्हन्) सत्कुर्वन् (अग्ने) विद्वन् (पैजवनस्य) वेगयुक्तस्य (दानम्) यद्दीयते तत् (होतेव) दातेव (सद्म) स्थानम् (परि) सर्वतः (एमि) प्राप्नोमि (रेभन्) स्तुवन्ति ॥२२॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यथा दातार उत्तमानि दानानि ददति पौत्रपर्यन्तं धनधान्यपश्वादीन् समर्धयन्ति तथा सर्वैर्वर्तितव्यम् ॥२२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे दाते उत्तम दान देतात व पौत्रापर्यंत धन, धान्य, पशू इत्यादींची समृद्धी करतात तसे सर्वांनी वागावे. ॥ २२ ॥