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न त॑ इन्द्र सुम॒तयो॒ न रायः॑ सं॒चक्षे॒ पूर्वा॑ उ॒षसो॒ न नूत्नाः॑। देव॑कं चिन्मान्यमा॒नं ज॑घ॒न्थाव॒ त्मना॑ बृह॒तः शम्ब॑रं भेत् ॥२०॥

English Transliteration

na ta indra sumatayo na rāyaḥ saṁcakṣe pūrvā uṣaso na nūtnāḥ | devakaṁ cin mānyamānaṁ jaghanthāva tmanā bṛhataḥ śambaram bhet ||

Pad Path

न। ते॒। इ॒न्द्र॒। सु॒ऽम॒तयः॑। न। रायः॑। स॒म्ऽचक्षे॑। पूर्वाः॑। उ॒षसः॑। न। नूत्नाः॑। देव॑कम्। चि॒त्। मा॒न्य॒मा॒नम्। ज॒घ॒न्थ॒। अव॑। त्मना॑। बृ॒ह॒तः। शम्ब॑रम्। भे॒त् ॥२०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:20 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सुख देनेवाले (ते) आपके (पूर्वाः) पहिली और (नूत्नाः) नवीन (उषसः) उषा वेलाओं के (न) समान वा (सुमतयः) उत्तम बुद्धिमानों के (न) समान (रायः) धनों को (संचक्षे) अच्छे प्रकार कहने को कोई भी (न) नहीं (जघन्थ) मारता है वा जैसे सूर्य (बृहतः) बड़े से बड़े (शम्बरम्) मेघदल को (भेत्) विदीर्ण करता, वैसे जिसे (त्मना) अपने से आप (अव) नष्ट करते हैं (चित्) उसके समान (मान्यमानम्) मान्यों का सत्कार जिसमें है उस (देवकम्) देव समान वर्त्तमान का सत्कार करें तो प्रजा सब ओर से बढ़े ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे राजन् ! जैसे पिछली और नई होनेवाली प्रभात वेला सर्वथा मङ्गल करनेवाली हैं, वैसे यदि न्याय से इकट्ठे किये हुए धन से धार्मिक और उत्तम बुद्धिवाले जनों का सत्कार कर उन उक्त मनुष्यों की रक्षा कर इनसे राज्य के कार्य्यों को साधिये और वहाँ मेघ को सूर्य के समान दुष्टों को मार श्रेष्ठों को प्रसन्न रखिये तो आपकी सब ओर से वृद्धि हो ॥२०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! ते पूर्वा नूत्ना उषसो न सुमतयो न रायः संचक्षे कोऽपि न जघन्थ कोऽपि न हन्ति यथा सूर्यो बृहतः शम्बरं भेत्तथा यं त्मना त्वमव जघन्थ चिदिव मान्यमानं देवकं सत्कुर्यास्तदा प्रजाः सर्वतो वर्धेरन् ॥२०॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (ते) तव (इन्द्र) सुखप्रद राजन् (सुमतयः) शोभनाः प्रज्ञा येषु ते (न) इव (रायः) धनानि (संचक्षे) सम्यक् प्रख्यातुम् (पूर्वाः) (उषसः) (न) इव (नूत्नाः) नवीनाः (देवकम्) देवमिव वर्त्तमानम् (चित्) इव (मान्यमानम्) मान्यानां मानं सत्कारो यस्मात् तम् (जघन्थ) हंसि (अव) विरोधे (त्मना) आत्मना (बृहतः) (शम्बरम्) मेघम् (भेत्) बिभेत्ति ॥२०॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! यथा पूर्वा नूतना भविष्यन्त्यश्च प्रभातवेलाः सर्वथा मङ्गलकारिण्यः सन्ति तथा यदि न्यायोपार्जितेन धार्मिकान् प्राज्ञान् सत्कृत्यैते राजकार्याणि साधयेस्तत्र मेघं सूर्य इव दुष्टान् हत्वा श्रेष्ठान् प्रसन्नान् रक्षेस्तर्हि तव सर्वतो वृद्धिः स्यात् ॥२०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जशी पूर्वीची व नवीन प्रभातवेळा सर्वस्वी मंगल करणारी असते तसेच न्यायाने संचित केलेल्या धनाने धार्मिक व उत्तम बुद्धीच्या लोकांचा सत्कार कर. त्यांचे रक्षण करून त्यांच्याकडून राज्यकार्य पूर्ण करून घे व सूर्य जसा मेघाचे हनन करतो तसे दुष्टांना नष्ट करून श्रेष्ठांना प्रसन्न केल्यास सगळीकडून तुझी वृद्धी होईल. ॥ २० ॥