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शश्व॑न्तो॒ हि शत्र॑वो रार॒धुष्टे॑ भे॒दस्य॑ चि॒च्छर्ध॑तो विन्द॒ रन्धि॑म्। मर्ताँ॒ एनः॑ स्तुव॒तो यः कृ॒णोति॑ ति॒ग्मं तस्मि॒न्नि ज॑हि॒ वज्र॑मिन्द्र ॥१८॥

English Transliteration

śaśvanto hi śatravo rāradhuṣ ṭe bhedasya cic chardhato vinda randhim | martām̐ enaḥ stuvato yaḥ kṛṇoti tigmaṁ tasmin ni jahi vajram indra ||

Pad Path

शश्व॑न्तः। हि। शत्र॑वः। र॒र॒धुः। ते॒। भे॒दस्य॑। चि॒त्। शर्ध॑तः। वि॒न्द॒। रन्धि॑म्। मर्ता॑न्। एनः॑। स्तु॒व॒तः। यः। कृ॒णोति॑। ति॒ग्मम्। तस्मि॑न्। नि। ज॒हि॒। वज्र॑म्। इ॒न्द्र॒ ॥१८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को सदा शत्रुपन से युक्त निवारने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं को विदीर्ण करनेवाले ! जो (हि) निश्चय से (शश्वन्तः) निरन्तर (शत्रवः) शत्रुजन हैं (ते) वे (स्तुवतः) स्तुति करते हुए (मर्तान्) मनुष्यों को (रारधुः) मारते हैं जो (भेदस्य, शर्धतः) बलवान् भेद के (रन्धिम्) वश करने को (चित्) ही (विन्द) प्राप्त हों (यः) जो (एनः) पहुँचानेवाला हिंसा (कृणोति) करता है (तस्मिन्) उसके और उन पिछलों के निमित्त भी (तिग्मम्) तीव्र गुण-कर्म-स्वभाववाले (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (नि, जहि) निरन्तर छोड़ो ॥१८॥
Connotation: - हे राजन् आदि धार्मिक जनो ! जो सर्वदा शत्रुभावयुक्त और धार्मिक जनों को नष्ट करते हुए विद्यमान हैं, उनको शीघ्र मारो, जिससे सब जगह सबके अभय और सुख बढ़ें ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैस्सदा शत्रुभावप्रयुक्ता वारणीया इत्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! ये हि शश्वन्तः शत्रवस्ते स्तुवतो मर्त्तान् रारधुः ये भेदस्य शर्धतो रन्धिञ्चिद्विन्द य एनः हिंसां कृणोति तस्मिन् तेषु च तिग्मं वज्रं निजहि निपातय ॥१८॥

Word-Meaning: - (शश्वन्तः) निरन्तरः (हि) यतः (शत्रवः) (रारधुः) हिंसन्ति (ते) (भेदस्य) विदारणस्य द्वैधीभावस्य (चित्) अपि (शर्धतः) बलवतः (विन्द) लभेरन् (रन्धिम्) वशीकरम् (मर्त्तान्) मनुष्यान् (एनः) प्रापकः (स्तुवतः) स्तावकान् (यः) (कृणोति) (तिग्मम्) तीव्रगुणकर्मस्वभावम् (तस्मिन्) सङ्ग्रामे (नि) (जहि) त्यज (वज्रम्) शस्त्रास्त्रम् (इन्द्र) शत्रुविदारक ॥१८॥
Connotation: - हे राजादयो धार्मिका जना ! ये सर्वदा शत्रुभावयुक्ता धार्मिकान् हिंसन्तस्सन्ति तान् सद्यो घ्नत येन सर्वत्र सर्वेषामभयसुखे वर्द्धेयाताम् ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा इत्यादी धार्मिक लोकांनो ! जे सदैव शत्रुभावाने युक्त असून धार्मिक लोकांना नष्ट करतात त्यांना शीघ्र नष्ट करा. ज्यामुळे सर्वत्र सर्वांना अभय मिळून सुख वाढेल. ॥ १८ ॥