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उप॑ त्वा सा॒तये॒ नरो॒ विप्रा॑सो यन्ति धी॒तिभिः॑। उपाक्ष॑रा सह॒स्रिणी॑ ॥९॥

English Transliteration

upa tvā sātaye naro viprāso yanti dhītibhiḥ | upākṣarā sahasriṇī ||

Pad Path

उप॑। त्वा॒। सा॒तये॑। नरः॑। विप्रा॑सः। य॒न्ति॒। धी॒तिऽभिः॑। उप॑। अक्ष॑रा। स॒ह॒स्रिणी॑ ॥९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:15» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्यार्थिनि ! जैसे (विप्रासः) बुद्धिमान् (नरः) मनुष्य (धीतिभिः) अङ्गुलियों से (अक्षरा) अकारादि अक्षरों को (उप, यन्ति) उपाय से प्राप्त करते वे जो कन्या (सहस्रिणी) असंख्य विद्याविषयों को जाननेवाली हैं, उसको जानें, वैसे (त्वा) आप के (सातये) सम्यक् विभाग के लिये बुद्धिमान् मनुष्य (उप) समीप प्राप्त हों ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अंगूठा और अङ्गुलियों से अक्षरों को जान कर विद्वान् होता है, वैसे ही विद्वान् लोग शोधन कर विद्या के रहस्यों को प्राप्त हों ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्वन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्यार्थिनि ! यथा विप्रासो नरो धीतिभिरक्षराण्युप यन्ति ते या सहस्रिणी वर्त्तते ताञ्जानन्तु तथा त्वा सातये विप्रासो नर उप यन्ति ॥९॥

Word-Meaning: - (उप) (त्वा) त्वाम् (सातये) संविभागाय (नरः) मनुष्याः (विप्रासः) मेधाविनः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (धीतिभिः) अङ्गुलिभिः (उप) (अक्षरा) अक्षराण्यकारादीनि (सहस्रिणी) सहस्राण्यसंख्याता विद्याविषया विद्यन्ते यस्यां सा ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽङ्गुष्ठाऽङ्गुलीभिरक्षराणि विज्ञाय विद्वान् भवति तथैव विद्वांसः शोधनेन विद्यारहस्यानि प्राप्नुवन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अंगठा व बोटे याद्वारे अक्षरे जाणून पुढे विद्वान बनता येते तसेच विद्वान लोकांनी संशोधन करून विद्यांचे रहस्य जाणावे. ॥ ९ ॥