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अधा॑ म॒ही न॒ आय॒स्यना॑धृष्टो॒ नृपी॑तये। पूर्भ॑वा श॒तभु॑जिः ॥१४॥

English Transliteration

adhā mahī na āyasy anādhṛṣṭo nṛpītaye | pūr bhavā śatabhujiḥ ||

Pad Path

अध॑। म॒ही। नः॒। आय॑सी। अना॑धृष्टः। नृऽपी॑तये। पूः। भ॒व॒। श॒तऽभु॑जिः ॥१४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:15» Mantra:14 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और राणी प्रजा के प्रति क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राणी ! जैसे तुम्हारा (अनाधृष्टः) किसी से न धमकाने योग्य पति राजा न्याय से मनुष्यों का पालन करता है, वैसे (अध) अब (आयसी) लोहे से बनी दृढ़ (पूः) नगरी के समान रक्षक (मही) महती वाणी के तुल्य (शतभुजिः) असंख्यात जीवों का पालन करनेवाली आप (नृपीतये) मनुष्यों के पालन के लिये (नः) हम स्त्री जनों की रक्षा करनेवाली (भव) हूजिये ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जहाँ शुभ गुणकर्मस्वभावयुक्त राजा पुरुषों और वैसे गुणोंवाली राणी स्त्रियों का न्याय और पालन करें, वहाँ सब काल में विद्या, आनन्द, अवस्था और ऐश्वर्य बढ़ें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजानौ प्रजाः प्रति किं कुर्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे राज्ञि ! यथा तवाऽनाधृष्टः पती राजा न्यायेन नॄन्पालयति तथाऽधाऽऽयसी पूरिव मही शतभुजिस्त्वं नृपीतये नो रक्षिका भव ॥१४॥

Word-Meaning: - (अधा) अध अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मही) महती वागेव राज्ञी (नः) अस्मान् स्त्रीजनान् (आयसी) अयोमयी दृढा (अनाधृष्टः) केनाऽप्याधर्षयितुमयोग्या (नृपीतये) नृणां पालनाय (पूः) नगरीव रक्षिका (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (शतभुजिः) शतमसंख्याता भुजयः पालनानि यस्याः सा ॥१४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यत्र शुभगुणकर्मस्वभावो राजा नॄणां तादृशी राज्ञी च स्त्रीणां न्यायपालने कुर्यातां तत्र सर्वदा विद्यानन्दायुरैश्वर्याणि वर्धेरन् ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेथे शुभ गुण-कर्म-स्वभावयुक्त राजा पुरुषांचे पालन करतो तशाच गुणांच्या राणीने स्त्रियांचे पालन करावे. तेथे सर्वकाळी विद्या, आनंद, अवस्था व ऐश्वर्य आणि आयुष्य वाढते. ॥ १४ ॥