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ये पा॑कशं॒सं वि॒हर॑न्त॒ एवै॒र्ये वा॑ भ॒द्रं दू॒षय॑न्ति स्व॒धाभि॑: । अह॑ये वा॒ तान्प्र॒ददा॑तु॒ सोम॒ आ वा॑ दधातु॒ निॠ॑तेरु॒पस्थे॑ ॥

English Transliteration

ye pākaśaṁsaṁ viharanta evair ye vā bhadraṁ dūṣayanti svadhābhiḥ | ahaye vā tān pradadātu soma ā vā dadhātu nirṛter upasthe ||

Pad Path

ये । पा॒क॒ऽशं॒सम् । वि॒ऽहर॑न्ते । एवैः॑ । ये । वा॒ । भ॒द्रम् । दू॒षय॑न्ति । स्व॒धाऽभिः॑ । अह॑ये । वा॒ । तान् । प्र॒ऽददा॑तु । सोमः॑ । आ । वा॒ । द॒धा॒तु॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्थे॑ ॥ ७.१०४.९

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:9


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये, पाकशंसं, विहरन्ते) जो राक्षस अर्थात् अन्यायकारी लोग सच्चे धर्म की प्रशंसा करनेवाले पुरुष को आक्षिप्त-दूषित करते हैं, (एवैः) ऐसे ही कामों से (ये, वा) जो पुरुष (स्वधाभिः) अपने साहसरूप बल से (भद्रम्) भद्र पुरुष को (दूषयन्ति) दूषित करते हैं, (तान्) उनको (सोमः) परमात्मा (अहये) हिंसकों को (प्रददातु) दे (वा) यद्वा (निर्ऋतेः, उपस्थे) असत्यवादियों की सङ्गति में (आदधातु) रक्खे ॥९॥
Connotation: - जो लोग अपने साहस से सद्धर्मपरायण पुरुषों को दूषित करते हैं, उनको परमात्मा हिंसकों के वशीभूत करता है अथवा पापात्मा पुरुषों के मध्य में फेंक देता है, जिससे वे स्वयं पापी बन कर अपने कर्मों से आप ही नष्ट-भ्रष्ट हो जायें। तात्पर्य इस मन्त्र का यह है कि परमात्मा उसे दण्ड देने के अभिप्राय से पापात्मा पुरुषों के वशीभूत करता है, ताकि वे दण्ड भोग कर स्वयं शुद्ध हो जायें। परमात्मा को सबका सुधार करना अपेक्षित है। नाश  करना इस अभिप्राय से कहा गया कि परमात्मा उसके कुकर्म और कुवृत्तियों का नाश करता है, आत्मनाश नहीं ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये, पाकशंसम्, विहरन्ते) ये दुष्टाः सद्धर्मप्रशंसकं   दूषयन्ति (एवैः, ये, वा) यद्वा ये चेत्थं भूतैरेवासत्याचरणैः (स्वधाभिः) स्वसाहसैः (भद्रम्) सुकर्माणं (दूषयन्ति) दुष्टं कारयन्ति (तान्) तान्दुष्टान् (सोमः) परमात्मा (अहये) हिंसकाय (प्रददातु) समर्पयतु वा यद्वा (निर्ऋतेः, उपस्थे) असत्यवादिसमक्षे (आदधातु) स्थापयतु ॥९॥