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इन्द्रा॑सोमा दु॒ष्कृतो॑ व॒व्रे अ॒न्तर॑नारम्भ॒णे तम॑सि॒ प्र वि॑ध्यतम् । यथा॒ नात॒: पुन॒रेक॑श्च॒नोदय॒त्तद्वा॑मस्तु॒ सह॑से मन्यु॒मच्छव॑: ॥

English Transliteration

indrāsomā duṣkṛto vavre antar anārambhaṇe tamasi pra vidhyatam | yathā nātaḥ punar ekaś canodayat tad vām astu sahase manyumac chavaḥ ||

Pad Path

इन्द्रा॑सोमा । दुः॒ऽकृतः॑ । व॒व्रे । अ॒न्तः । अ॒ना॒र॒म्भ॒णे । तम॑सि । प्र । वि॒ध्य॒त॒म् । यथा॑ । न । अतः॑ । पुनः॑ । एकः॑ । च॒न । उ॒त्ऽअय॑त् । तत् । वा॒म् । अ॒स्तु॒ । सह॑से । म॒न्यु॒ऽमत् । शवः॑ ॥ ७.१०४.३

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:3


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रासोमा) हे उक्तशक्तिद्वयप्रधान परमात्मन् ! (दुष्कृतः) जो वेदविरुद्धकर्म करनेवाले दुराचारी हैं, उनको (वव्रे) महादुःखों से  आवृत (अनारम्भणे) जिसमें कोई आलम्बन नहीं है, ऐसे (तमसि, अन्तः) घोर नरक में (प्र, विध्यतम्) प्रविष्ट कर ऐसा ताड़न कीजिये (यथा) जिससे कि (अतः) इस यातना से (एकश्चन, पुनः, न, उदयत्) फिर एक भी दुष्कर्म न करे तथा (तत्) वह प्रसिद्ध (वाम्) आपका (मन्युमत्, शवः) मन्युयुक्त बल (सहसे, अस्तु) राक्षसों के नाश करनेवाला हो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा के मन्यु का वर्णन किया है, जैसा कि अन्यत्र भी कहा है कि ‘मन्युरसि मन्युं महि धेहि’ कि आप मन्युस्वरूप हैं, मुझे भी मन्यु प्रदान करें। मन्यु के अर्थ यहाँ परमात्मा की दमनरूप शक्ति के हैं। जैसा कि ‘महद्भयं वज्रमुद्यतम्’। कठ. ६।२। हे परमात्मन् ! आपकी दमनरूप शक्ति से वज्र उठाये हुए के समान भय प्रतीत होता है। इसमें सन्देह नहीं कि दुष्टों के दमन के लिये परमात्मा भयरूप है, इसी अभिप्राय से कहा है कि ‘भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्यः’ उसके दमनरूप शक्ति के नियम में आकर सब सूर्य-चन्द्रादि भ्रमण करते हैं, इस भाव को इस सूक्त में वर्णन किया है ॥३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रासोमा) हे न्यायशील परमात्मन् ! (दुष्कृतः) वेदविरुद्धमाचरतः क्रूरान् (वव्रे) विविधदुःखावृते (अनारम्भणे) अवलम्बनरहिते (तमसि, अन्तः) प्रचण्डनरकमध्ये (प्र, विध्यतम्) प्रवेश्य तथा ताडयतु (यथा) येन हि (अतः) अतो यातनातः (एकश्चन, पुनः, न) एकोऽपि भूयो न (उदयत्) दुष्कर्मसु वृद्धिं प्राप्नुयात्, तथा (तत्) तत्प्रसिद्धं (ताम्) भवतः (मन्युमत्, शवः) सहमन्युना दुष्कर्मापनयनसमर्थेन तेजसा बलं (सहसे, अस्तु) रक्षसां नाशाय भवतु ॥३॥