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वि ति॑ष्ठध्वं मरुतो वि॒क्ष्वि१॒॑च्छत॑ गृभा॒यत॑ र॒क्षस॒: सं पि॑नष्टन । वयो॒ ये भू॒त्वी प॒तय॑न्ति न॒क्तभि॒र्ये वा॒ रिपो॑ दधि॒रे दे॒वे अ॑ध्व॒रे ॥

English Transliteration

vi tiṣṭhadhvam maruto vikṣv icchata gṛbhāyata rakṣasaḥ sam pinaṣṭana | vayo ye bhūtvī patayanti naktabhir ye vā ripo dadhire deve adhvare ||

Pad Path

वि । ति॒ष्ठ॒ध्व॒म् । म॒रु॒तः॒ । वि॒क्षु । इ॒च्छत॑ । गृ॒भा॒यत॑ । र॒क्षसः॑ । सम् । पि॒न॒ष्ट॒न॒ । वयः॑ । ये । भू॒त्वी । प॒तय॑न्ति । न॒क्तऽभिः॑ । ये । वा॒ । रिपः॑ । द॒धि॒रे । दे॒वे । अ॒ध्व॒रे ॥ ७.१०४.१८

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:18


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मरुतः) हे ज्ञानयोगी तथाकर्म्मयोगी पुरुषो ! आप (विक्षु) प्रजाओं में (वितिष्ठध्वं) विशेषरूप में स्थिर हों और (रक्षसः) राक्षसों के पकड़ने की (इच्छत) इच्छा करें और (गृभायत) पकड़ कर (सं, पिनष्टन) भलीभाँति नाश करें। (ये) जो राक्षस (वयः) पक्षियों के (भूत्वी) समान बनकर (नक्तभिः) रात में (पतयन्ति) गमन करते हैं और (ये, वा) जो (देवे) देवताओं के (अध्वरे) यज्ञ में (रिपः) हिंसा को (दधिरे) धारण करते हैं, उनको आप नष्ट करें ॥१८॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी पुरुषों ! आप लोग आकाशमार्ग में जाकर प्रजा को पीड़ा देनेवाले अन्तरायकारी राक्षसों को क्रियाकौशल द्वारा विमानादि यान बनाकर नाश करें। इस मन्त्र में परमात्मा ने प्रजा की रक्षा के लिए पुरुषों को सम्बोधन करके अन्यायकारी राक्षसों के हनन का उपदेश किया है ॥१८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मरुतः) हे ज्ञानयोगिनः, कर्मयोगिनश्च पुरुषाः ! यूयं (विक्षु) प्रजासु (वितिष्ठध्वम्) विशेषतया वर्तध्वं (रक्षसः) राक्षसान् ग्रहीतुं (इच्छत) कामयध्वं (गृभायत, सम्, पिनष्टन) ग्रहीत्वा सम्मर्दयत (ये) ये राक्षसाः (वयः, भूत्वी) पक्षिण इव आकाश आगत्य (नक्तभिः) रात्रौ (पतयन्ति) पतित्वा विघ्नन्ति (ये, वा) ये च (देवे, अध्वरे) दिव्ये यज्ञे (रिपः) हिंसां (दधिरे) धारयन्ति ॥१८॥