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यदि॑ वा॒हमनृ॑तदेव॒ आस॒ मोघं॑ वा दे॒वाँ अ॑प्यू॒हे अ॑ग्ने । किम॒स्मभ्यं॑ जातवेदो हृणीषे द्रोघ॒वाच॑स्ते निॠ॒थं स॑चन्ताम् ॥

English Transliteration

yadi vāham anṛtadeva āsa moghaṁ vā devām̐ apyūhe agne | kim asmabhyaṁ jātavedo hṛṇīṣe droghavācas te nirṛthaṁ sacantām ||

Pad Path

यदि॑ । वा॒ । अ॒हम् । अनृ॑तऽदेवः । आस॑ । मोघ॑म् । वा॒ । दे॒वान् । अ॒पि॒ऽऊ॒हे । अ॒ग्ने॒ । किम् । अ॒स्मभ्य॑म् । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । हृ॒णी॒षे॒ । द्रो॒घ॒ऽवाचः॑ । ते॒ । नि॒र्ऽऋ॒थम् । स॒च॒न्ता॒म् ॥ ७.१०४.१४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:14 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:14


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ARYAMUNI

जब जीव के शपथरूप से ईश्वर के आगे अनन्य भक्ति का कथन किया जाता है।

Word-Meaning: - (यदि वा) यदि मैं (अनृतदेवः) झूठे देवों के माननेवाला (आस) हूँ अथवा (अग्नि) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (मोघं) वा मिथ्या (देवान्) देवताओं की (अप्यूहे) कल्पना करता हूँ, तभी निस्सन्देह अपराधी हूँ। जब ऐसा नहीं, तो (किमस्मभ्यं) हमको क्यों (जातवेदः) हे सर्वव्यापक परमात्मन् ! आप (हृणीषे) हमारे विपरीत हैं, (द्रोघवाचः) मिथ्यावादी और मिथ्या देवताओं के पूजनेवाले (ते) तुम्हारे (निर्ऋथं) दण्ड को (सचन्ताम्) सेवन करें ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में प्रार्थना के भाव से मिथ्या देवों की उपासना का निषेध किया है अर्थात् ईश्वर से भिन्न किसी अन्य देव की उपासना का यहाँ बलपूर्वक निषेध किया है और जो लोग भिन्न-भिन्न देवताओं के पुजारी हैं, उनको राक्षस वा ईश्वर के दण्ड के पात्र बतलाया है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर को छोड़ कर अन्य किसी की पूजा ईश्वरत्वेन कदापि नहीं करनी चाहिये, इस भाव का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥१४॥
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ARYAMUNI

अथ जीवः शपथरूपेणेश्वराग्रे अनन्यभक्तिं कथयति।

Word-Meaning: - (यदि, वा, अहम्) यदि चेत् अहं (अनृतदेवः) मिथ्यादेवानामभिमन्ता (आस) अस्मि यद्वा (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (मोघम्) मिथ्या (वा) एव (देवान्) देवताः (अपि, ऊहे) कल्पयामि तदाऽहं नूनमपराध्यस्मि अन्यथा (किम्, अस्मभ्यम्) मदर्थं कुतः (जातवेदः) हे जातानां वेदितः ! (हृणीषे) क्रुध्यसि (द्रोघवाचः) मिथ्यावादिनः (ते) तव (निः ऋथम्) दण्डं (सचन्ताम्) सेवन्ताम् ॥१४॥