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ब्रा॒ह्म॒णासो॑ अतिरा॒त्रे न सोमे॒ सरो॒ न पू॒र्णम॒भितो॒ वद॑न्तः । सं॒व॒त्स॒रस्य॒ तदह॒: परि॑ ष्ठ॒ यन्म॑ण्डूकाः प्रावृ॒षीणं॑ ब॒भूव॑ ॥

English Transliteration

brāhmaṇāso atirātre na some saro na pūrṇam abhito vadantaḥ | saṁvatsarasya tad ahaḥ pari ṣṭha yan maṇḍūkāḥ prāvṛṣīṇam babhūva ||

Pad Path

ब्रा॒ह्म॒णासः॑ । अ॒ति॒ऽरा॒त्रे । न । सोमे॑ । सरः॑ । न । पू॒र्णम् । अ॒भितः॑ । वद॑न्तः । स॒व्ँम्व॒त्स॒रस्य॑ । तत् । अह॒रिति॑ । परि॑ । स्थ॒ । यत् । म॒ण्डू॒काः॒ । प्रा॒वृ॒षीण॑म् । ब॒भूव॑ ॥ ७.१०३.७

Rigveda » Mandal:7» Sukta:103» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:7


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ARYAMUNI

इस भाव को अब प्रकारान्तर से वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (यत्, मण्डूकाः) जो कि मण्डूक भी (संवत्सरस्य, तत्, अहः) वर्ष के उपरान्त होनेवाले दिन में (प्रावृषीणम्, बभूव) जिस दिन कि नई वर्षा होती है, (पूर्णम्, सरः, न, अभितः, वदन्तः) पूर्ण सर की कामना से चारों ओर बोलते हुए (परि, स्थ) इधर-उधर स्थित होते हैं, इसी प्रकार (ब्राह्मणासः) हे ब्राह्मणो ! तुम भी (अतिरात्रे) रात्रि के अनन्तर ब्राह्ममुहूर्त्त में (सोमे, न) जिस समय सौम्यबुद्धि होती है, उस समय वेदध्वनि से परमेश्वर के यज्ञ को वर्णन करते हुए वर्षाऋतु के उत्सव को मनाओ ॥७॥
Connotation: - उक्त मन्त्र में परमात्मा ने वर्षाकाल में वैदिकोत्सव के मनाने का उपदेश किया है कि हे मनुष्यों ! तुम वर्षाऋतु में प्रकृति के विचित्र दृश्य को देख कर वैदिक सूक्तों से उपासना करो और सोमादि यज्ञों द्वारा ब्रह्मोत्सवों को मनाओ। विचित्र बात है कि जिस जाति के धर्मपुस्तक में यह उपदेश था, उस जाति में इस भाव को छोड़कर अन्य सब प्रकार के उत्सव वर्षाऋतु में मनाये जाते हैं, किन्तु वैदिकोत्सव कोई नहीं मनाया जाता, इससे हानिप्रद बात और क्या हो सकती है ॥७॥
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ARYAMUNI

एतदेव प्रकारान्तरेण कथ्यते।

Word-Meaning: - (यत्, मण्डूकाः) यस्मान्मण्डूका अपि (संवत्सरस्य, तदहः) संवत्सरोपरान्ते आगच्छति दिने (प्रावृषीणम्, बभूव) यत्र दिने हि प्रथमवृष्टिर्भवति तत्र (पूर्णम्, सरः, न, अभितः वदन्तः) सरः पूर्णत्वकामा अभितो वदन्तः (परि, स्थ) इतस्तत उपविशन्ति अत एव (ब्रह्मणासः) भो ब्राह्मणाः ! यूयमपि (अतिरात्रे) ब्राह्ममुहूर्त्ते (सोमे, न) सौम्यबुद्धिकारककाले वेदध्वनिना परमात्मानं स्तुवन् वृष्टिमहोत्सवं विधत्त ॥७॥