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दि॒व्या आपो॑ अ॒भि यदे॑न॒माय॒न्दृतिं॒ न शुष्कं॑ सर॒सी शया॑नम् । गवा॒मह॒ न मा॒युर्व॒त्सिनी॑नां म॒ण्डूका॑नां व॒ग्नुरत्रा॒ समे॑ति ॥

English Transliteration

divyā āpo abhi yad enam āyan dṛtiṁ na śuṣkaṁ sarasī śayānam | gavām aha na māyur vatsinīnām maṇḍūkānāṁ vagnur atrā sam eti ||

Pad Path

दि॒व्याः । आपः॑ । अ॒भि । यत् । ए॒न॒म् । आय॑न् । दृति॑म् । न । शुष्क॑म् । स॒र॒सी इति॑ । शया॑नम् । गवा॑म् । अह॑ । न । मा॒युः । व॒त्सिनी॑नाम् । म॒ण्डूका॑नाम् । व॒ग्नुः । अत्र॑ । सम् । ए॒ति॒ ॥ ७.१०३.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:103» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अत्र) इस वर्षाकाल में (मण्डूकानाम्) वर्षाकाल को मण्डन करनेवाले जीवों का (वग्नुः) शब्द (समेति) भलीभाँति से वर्षाऋतु को सुशोभित करता है, (न) जैसे कि (वत्सिनीनाम्) प्रमारूप वृत्तियों के साथ (गवाम्) मिली हुई इन्द्रियों का (मायुः) ज्ञान यथार्थ होता है, (न) जिस प्रकार (दृतिम्, शुष्कम्) सूखा हुआ जलस्थान फिर हरा-भरा हो जाता है, इसी प्रकार (दिव्याः, आपः, यत्, एनम्) द्युलोक में होनेवाले जल जब (अभि) चारों ओर से इस मण्डूगण को (सरसी, शयानम्) सूखे तालाब में सोते हुए को (आयन्) प्राप्त होते हैं, तो यह भी उस पात्र के समान फिर   पूर्वावस्था को प्राप्त हो जाता है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह बोधन किया है कि वर्षाकाल के साथ मेंढकादि जीवों का ऐसा घनिष्ठ सम्बन्ध है, जैसा इन्द्रियों का इन्द्रियों की वृत्तियों के साथ। जैसे इन्द्रियों की यथार्थ ज्ञानरूप प्रमा आदि वृत्तियें इन्द्रियों को मण्डन करती हैं, इसी प्रकार ये वर्षाऋतु को मण्डन करते हैं।दूसरी बात इस मन्त्र से यह स्पष्ट होती है कि मण्डूकादिकों का जन्म मैथुनी सृष्टि के समान मैथुन से नहीं होता, किन्तु प्रकृतिरूप बीज से ही वे उत्पन्न हो जाते हैं, इससे अमैथुनी सृष्टि होने का नियम भी परमात्मा ने इस मन्त्र में दर्शा दिया।जो लोग यह कहा करते हैं कि वेदों में कोई अपूर्वता नहीं, उसमें तो मेंढक और मत्स्यों का बोलना आदिक भी लिखा है, उनको ऐसे सूक्त ध्यानपूर्वक पढ़ने चाहिये। इन वर्षाऋतु के सूक्तों ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि जिस उत्तमता के साथ वर्षाऋतु का वर्णन वेद में है, वैसा आज तक किसी कवि ने नहीं किया, अर्थात् जो प्राकृत नियमों की अपूर्वता, ईश्वरीयज्ञान वेद कर सकता है, उसको जीव का तुच्छ ज्ञान कैसे कर सकता है। जीव का ज्ञान तो केवल वेदों से एक जल के बिन्दु के समान एक अंश को लेकर वर्णन करता है।जो लोग यह कहा करते हैं कि ऋग्वेद सिन्धु नदी अर्थात् अटक के आस-पास बना, उनको इस सूक्त से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि इसमें तो उन देशों का वर्णन पाया जाता है, जिनमें घोर वृष्टि होती है और सिन्धु नदी के तट पर तो वर्षाऋतु ही नहीं होती। कभी-कभी आगन्तुक वृष्टि होती है। अस्तु, ऐसे निर्मूल आक्षेपों की वेदों में क्या कथा ? इनमें तो लोक-लोकान्तरों के सब पदार्थों का वर्णन पाया जाता है, फिर एकदेशी होने का आक्षेप निर्मूल नहीं तो क्या ? ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अत्र) अस्मिन् वर्षाकाले (मण्डूकानाम्) तस्य मण्डनकर्तॄणां जन्तूनां (वग्नुः) शब्दः (समेति) सम्यक् सञ्चित्य प्रकाशते (न) यथा (वत्सिनीनाम्) प्रमारूपवृत्तिभिः सह वर्तमानानां (गवाम्) इन्द्रियाणां (मायुः) ज्ञानं यथार्थं भवति (न) यथा च (दृतिम्, शुष्कम्) शुष्कं जलपात्रं जलं प्राप्य पुनरपि आर्द्रं भवति तथैव (दिव्याः, आपः, यत्, एनम्) द्युलोकजा आपो यदा (अभि) सर्वतो मण्डूकगणं (सरसी, शयानम्) शुष्कसरसि स्वपन्तं (आयन्) प्राप्नुवन्ति तदा सोऽपि पात्रवत् आर्द्रतां याति ॥२॥