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सु॒प॒र्णं व॑स्ते मृ॒गो अ॑स्या॒ दन्तो॒ गोभिः॒ संन॑द्धा पतति॒ प्रसू॑ता। यत्रा॒ नरः॒ सं च॒ वि च॒ द्रव॑न्ति॒ तत्रा॒स्मभ्य॒मिष॑वः॒ शर्म॑ यंसन् ॥११॥

English Transliteration

suparṇaṁ vaste mṛgo asyā danto gobhiḥ saṁnaddhā patati prasūtā | yatrā naraḥ saṁ ca vi ca dravanti tatrāsmabhyam iṣavaḥ śarma yaṁsan ||

Pad Path

सु॒ऽप॒र्णम्। व॒स्ते॒। मृ॒गः। अ॒स्याः॒। दन्तः॑। गोभिः॑। सम्ऽन॑द्धा। प॒त॒ति॒। प्रऽसू॑ता। यत्र॑। नरः॒। सम्। च॒। वि। च॒। द्रव॑न्ति। तत्र॑। अ॒स्मभ्य॑म्। इष॑वः। शर्म॑। यं॒स॒न् ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:75» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भूमि कैसी वेगवाली है और युद्ध करनेवाले युद्ध क्यों करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (गोभिः) किरण वा धेनुओं से (सन्नद्धा) अच्छे प्रकार से बंधी और (प्रसूता) उत्पन्न हुई भूमि (मृगः) मृग के समान (पतति) जाती है (अस्याः) इसके बीच (दन्तः) जिससे डशते हैं वह दाँत वर्त्तमान है जो (सुपर्णम्) सुन्दर पालना करनेवाले को (वस्ते) उढ़ाता है और (यत्रा) जिस संग्राम में (नरः) योद्धा नर (च) भी (सम्, द्रवन्ति) अच्छे प्रकार दौड़ते हैं (च) और (वि) विशेष धावन करते हैं (तत्र) वहाँ (इषवः) बाण (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (शर्म) सुख जैसे (यंसन्) देवें, वैसा अनुष्ठान करो ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो भूमि परमेश्वर ने पालना के लिये बनाई है और मृग के समान शीघ्र जाती है तथा जिसके लिये सङ्ग्राम होता है, उसकी प्राप्ति के निमित्त वीरता का संग्र­ह करो ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्भूमिः कीदृग्वेगवती वीराश्च किमर्थं सङ्ग्रामं कुर्वन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! या गोभिः सन्नद्धा प्रसूता सती भूमिर्मृग इव पतति, अस्या मध्ये दन्तो वर्त्तते या सुपर्णं वस्ते यत्रा नरश्च सं द्रवन्ति वि द्रवन्ति च तत्रेषवोऽस्मभ्यं शर्म यथा यंसन् तथाऽनुतिष्ठत ॥११॥

Word-Meaning: - (सुपर्णम्) शोभनं पर्णं पालनं यस्य तम् (वस्ते) आच्छादयति (मृगः) यो मार्ष्टि तद्वत् (अस्याः) प्रजायाः (दन्तः) येन दंशति सः (गोभिः) किरणैर्धेनुभिर्वा (सन्नद्धा) सम्यग्बद्धा (पतति) गच्छति (प्रसूता) उत्पन्ना सती (यत्रा) यस्मिन् सङ्ग्रामे। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नरः) मनुष्याः (सम्) (च) (वि) (च) (द्रवन्ति) गच्छन्ति (तत्र) (इषवः) बाणाः (शर्म) सुखम् (यंसन्) यच्छन्तु ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्या ! या भूमिः परमेश्वरेण पालनाय निर्मिता मृगवत्सद्यो धावति यदर्थं भूरि सङ्ग्रामो भवति तस्याः प्राप्तौ वीरतां सङ्गृह्णन्तु ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! परमेश्वराने जी भूमी पालन करण्यासाठी निर्माण केलेली आहे, जी मृगासारखी शीघ्रतेने फिरते तसेच जिच्यासाठी मोठमोठी युद्धे होतात तिच्या प्राप्तीसाठी वीरता अंगी बाणवा. ॥ ११ ॥