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बृह॒स्पतिः॒ सम॑जय॒द्वसू॑नि म॒हो व्र॒जान् गोम॑तो दे॒व ए॒षः। अ॒पः सिषा॑स॒न्त्स्व१॒॑रप्र॑तीतो॒ बृह॒स्पति॒र्हन्त्य॒मित्र॑म॒र्कैः ॥३॥

English Transliteration

bṛhaspatiḥ sam ajayad vasūni maho vrajān gomato deva eṣaḥ | apaḥ siṣāsan svar apratīto bṛhaspatir hanty amitram arkaiḥ ||

Pad Path

बृह॒स्पतिः॑। सम्। अ॒ज॒य॒त्। वसू॑नि। म॒हः। व्र॒जान्। गोऽम॑तः। दे॒वः। ए॒षः। अ॒पः। सिसा॑सन्। स्वः॑। अप्र॑तिऽइतः। बृह॒स्पतिः॑। हन्ति॑। अ॒मित्र॑म्। अ॒र्कैः ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:73» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (महः) महान् (देवः) देदीप्यमान (एषः) यह (बृहस्पतिः) सूर्य के समान वेदवाणी को पालनेवाला (गोमतः) बहुत किरणों से युक्त (व्रजान्) मेघों को छिन्न-भिन्न कर (अपः) जलों को वर्षाय जगत् की पालना करता है, वैसे शत्रुओं से (अप्रतीतः) न प्रतीत को प्राप्त होता हुआ (बृहस्पतिः) बड़े राज्य की यथावत् रक्षा करनेवाला राजा (अर्कैः) वज्र आदि के साथ प्रजाजनों के (सिषासन्) काम पूरे करने की इच्छा कर (अमित्रम्) शत्रु को (हन्ति) मारता है तथा शत्रुओं को (सम्, अजयत्) अच्छे प्रकार जीतता है तथा (वसूनि) धनों को प्राप्त होता और (स्वः) अन्तरिक्ष के समान अक्षय सुख को उत्पन्न करता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा सूर्य के समान विद्या, विनय और अच्छे सहाय से प्रकाशमान, प्रजाजनों की पालना करता और सब के लिये अभयदान देता हुआ दुष्टकर्म करनेवालों की निवृत्ति करता है, वही यहाँ राजाओं में महान् राजा होता है ॥३॥ इस सूक्त में बृहस्पति के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तिहत्तरवाँ सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा महो देव एषो बृहस्पतिर्गोमतो व्रजान् हत्वाऽपो वर्षयित्वा जगत्पालयति तथा शत्रुभिरप्रतीतो बृहस्पती राजाऽर्कैः प्रजाः सिषासन्नमित्रं हन्ति शत्रून् समजयद्वसूनि प्राप्नोति स्वर्जनयति ॥३॥

Word-Meaning: - (बृहस्पतिः) सूर्य इव बृहत्या वेदवाचः पालकः (सम्) सम्यक् (अजयत्) जयति (वसूनि) धनानि (महान्) सन् (व्रजान्) मेघान् (गोमतः) बहुकिरणयुक्तान् (देवः) देदीप्यमानः (एषः) प्रत्यक्षः (अपः) जलानि (सिषासन्) कर्मसमाप्तिं कर्त्तुमिच्छन् (स्वः) अन्तरिक्षमिवाक्षयं सुखम् (अप्रतीतः) यः शत्रुभिरप्रतीयमानः (बृहस्पतिः) बृहतो राज्यस्य यथावद्रक्षकः (हन्ति) (अमित्रम्) शत्रुम् (अर्कैः) वज्रादिभिः। अर्क इति वज्रनाम। (निघं०२.२०) ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा सूर्यवद्विद्याविनयसुसहायैः प्रकाशमानः प्रजाः पालयन् सर्वेभ्योऽभयं ददन् दुष्टकर्मकारिणो निवारयति स एवाऽत्र राजसु महान् राजा जायत इति ॥३॥ अत्र बृहस्पतिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिसप्ततितमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा सूर्याप्रमाणे विद्या, विनय, उत्तम साह्य याद्वारे कीर्तिमान बनून प्रजेचे पालन करतो तोच राजांमध्ये महान राजा असतो. ॥ ३ ॥