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इन्द्रा॑सोमा यु॒वम॒ङ्ग तरु॑त्रमपत्य॒साचं॒ श्रुत्यं॑ रराथे। यु॒वं शुष्मं॒ नर्यं॑ चर्ष॒णिभ्यः॒ सं वि॑व्यथुः पृतना॒षाह॑मुग्रा ॥५॥

English Transliteration

indrāsomā yuvam aṅga tarutram apatyasācaṁ śrutyaṁ rarāthe | yuvaṁ śuṣmaṁ naryaṁ carṣaṇibhyaḥ saṁ vivyathuḥ pṛtanāṣāham ugrā ||

Pad Path

इन्द्रा॑सोमा। यु॒वम्। अ॒ङ्ग। तरु॑त्रम्। अ॒प॒त्य॒ऽसाच॑म्। श्रुत्य॑म्। र॒रा॒थे॒ इति॑। यु॒वम्। शुष्म॑म्। नर्य॑म्। च॒र्ष॒णिऽभ्यः॑। सम्। वि॒व्य॒थुः॒। पृ॒त॒ना॒ऽसह॑म्। उ॒ग्रा॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:72» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अङ्ग) हे मित्र अध्यापक और उपदेशक ! (युवम्) तुम दोनों (इन्द्रासोमा) वायु और बिजुली के समान वर्त्तमान (तरुत्रम्) दुःख से तारने और (अपत्यसाचम्) सन्तान के बीच व्याप्त होनेवाले (श्रुत्यम्) श्रवणों में उत्तम ज्ञान को (रराथे) देओ और (युवम्) तुम दोनों (चर्षणिभ्यः) मनुष्यों के लिये (उग्रा) तेजस्वी होते हुए (पृतनाषाहम्) सेनाओं को सहनेवाले (नर्यम्) मनुष्यों में उत्तम (शुष्मम्) बल को (सम्, विव्यथुः) अच्छे प्रकार युक्त करो ॥५॥
Connotation: - हे अध्यापक वा उपदेशको ! आप लोग पवन और बिजुली के समान सर्वत्र अनुकूलता से सङ्गवाले होते हुए उत्तम सन्तानों को उत्पन्न कर मनुष्यों के हित करनेवाले शरीर और आत्मा के बल को उत्पन्न करें, जिससे शत्रुओं की सेना को सह सकें ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, सोम, अध्यापक और उपदेशकों के काम का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बहत्तरवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ किंवत् किं कुर्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे अङ्ग अध्यापकोपदेशकौ ! युवमिन्द्रासोमावत्तरुत्रमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथे युवं चर्षणिभ्यः उग्रा सन्तौ पृतनाषाहं नर्यं शुष्मं सं विव्यथुः ॥५॥

Word-Meaning: - (इन्द्रासोमा) वायुविद्युद्वद्वर्त्तमानौ (युवम्) युवाम् (अङ्ग) मित्र (तरुत्रम्) दुःखात्तारकम् (अपत्यसाचम्) यदपत्ये सचति व्याप्नोति तत् (श्रुत्यम्) श्रुतिषु श्रवणेषु साधुः (रराथे) रातम् (युवम्) (शुष्मम्) बलम् (नर्यम्) नृषु साधुः (चर्षणिभ्यः) मनुष्येभ्यः (सम्) (विव्यथुः) सन्तनुतं वेष्टयतम् (पृतनाषाहम्) यः पृतनाः सेनाः सहते तम् (उग्रा) उग्रौ तेजस्विनौ ॥५॥
Connotation: - हे अध्यापकोपदेशका ! भवन्तो वायुविद्युद्वत्सर्वत्रानुषङ्गिनस्सन्त उत्तमान्यपत्यान्युत्पाद्य मनुष्यहितकरं शरीरात्मबलं जनयन्तु येन शत्रुसेनां सोढुं शक्नुयुरिति ॥५॥ अत्रेन्द्रसोमाध्यापकोपदेशककृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विसप्ततितमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे अध्यापक, उपदेशकांनो ! तुम्ही वायू व विद्युतप्रमाणे सर्वत्र अनुकूल संगती करून उत्तम संताने उत्पन्न करा व मानवाचे कल्याण करणाऱ्या शरीर व आत्मा यांच्यात बल उत्पन्न करा. ज्यामुळे ते शत्रूबरोबर दोन हात करू शकतील. ॥ ५ ॥