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इन्द्रा॑सोमा॒वहि॑म॒पः प॑रि॒ष्ठां ह॒थो वृ॒त्रमनु॑ वां॒ द्यौर॑मन्यत। प्रार्णां॑स्यैरयतं न॒दीना॒मा स॑मु॒द्राणि॑ पप्रथुः पु॒रूणि॑ ॥३॥

English Transliteration

indrāsomāv ahim apaḥ pariṣṭhāṁ hatho vṛtram anu vāṁ dyaur amanyata | prārṇāṁsy airayataṁ nadīnām ā samudrāṇi paprathuḥ purūṇi ||

Pad Path

इन्द्रा॑सोमौ। अहि॑म्। अ॒पः। प॒रि॒ऽस्थाम्। ह॒थः। वृ॒त्रम्। अनु॑। वा॒म्। द्यौः। अ॒म॒न्य॒त॒। प्र। अर्णां॑सि। ऐ॒र॒य॒त॒म्। न॒दीना॑म्। आ। स॒मु॒द्राणि॑। प॒प्र॒थुः॒। पु॒रूणि॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:72» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किसके तुल्य कैसे वर्त्ताव करावें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! तुम दोनों जैसे (इन्द्रासोमौ) बिजुली और पवन (परिष्ठाम्) सब ओर से स्थित होनेवाले (वृत्रम्) सूर्यावरक (अहिम्) मेघ को (हथः) छिन्न-भिन्न करते और (अपः) जलों को (आ, पप्रथुः) व्याप्त होते हैं, वैसे अविद्या को नष्ट-भ्रष्ट कर विद्या को विस्तारो, जैसे ये दोनों (नदीनाम्) नदियों के (पुरूणि) बहुत (समुद्राणि) उन स्थानों को जिनमें अच्छे प्रकार जल तरङ्गें लेते हैं तथा (अर्णांसि) जलों को प्रेरणा देते हैं, वैसे शास्त्रों के बीच मनुष्यों के अन्तःकरणों को (प्र, ऐरयतम्) प्रेरित करो, ऐसे (वाम्) तुम दोनों के बीच एक (द्यौः) प्रकाश के समान (अमन्यत) मानता है, दूसरा (अनु) तदनुगामी होता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे अध्यापक और उपदेशको ! जैसे वायु और बिजुली मेघ को नष्ट-भ्रष्ट कर जल को वर्षाते हैं, वैसे कुत्सित शिक्षा को विनष्ट कर अच्छी शिक्षा की वर्षा करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते किंवत् कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवां यथेन्द्रासोमौ परिष्ठां वृत्रमहिं हथोऽप आपप्रथुस्तथैवाऽविद्यां हत्वा विद्यां प्रथयतम्। यथेमौ नदीनां पुरूणि समुद्राण्यर्णांसीरयतस्तथा शास्त्राणां मध्ये मनुष्यान्तःकरणानि प्रैरयतमेवं वां युवयोरेको द्यौरिवामन्यत द्वितीयस्तमनुवर्त्तेत ॥३॥

Word-Meaning: - (इन्द्रासोमौ) विद्युन्मरुतौ (अहिम्) मेघम् (अपः) जलानि (परिष्ठाम्) यः परितस्तिष्ठति तम् (हथः) (वृत्रम्) सूर्यावरकम् (अनु) (वाम्) युवयोर्मध्ये (द्यौः) प्रकाश इव (अमन्यत) मन्यते (प्र) (अर्णांसि) उदकानि। अर्ण इत्युदकनाम। (निघं०१.१२)। (ऐरयतम्) प्रापयतम् (नदीनाम्) (आ) (समुद्राणि) सम्यग्द्रवन्त्यापो येषु स्थानेषु तानि (पप्रथुः) व्याप्नुतः। अत्र सर्वत्र पुरुषव्यत्ययः (पुरूणि) बहूनि ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे अध्यापकोपदेशका ! यथा वायुविद्युतौ मेघं हत्वोदकं वर्षयतस्तथा कुशिक्षां विनाश्य सुशिक्षावृष्टिं कुर्वन्तु ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वायू व विद्युत मेघांना नष्टभ्रष्ट करून जलाचा वर्षाव करतात तसा कुशिक्षणाचा नाश करून सुशिक्षणाची वृष्टी करा. ॥ ३ ॥