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अद॑ब्धेभिः सवितः पा॒युभि॒ष्ट्वं शि॒वेभि॑र॒द्य परि॑ पाहि नो॒ गय॑म्। हिर॑ण्यजिह्वः सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ रक्षा॒ माकि॑र्नो अ॒घशं॑स ईशत ॥३॥

English Transliteration

adabdhebhiḥ savitaḥ pāyubhiṣ ṭvaṁ śivebhir adya pari pāhi no gayam | hiraṇyajihvaḥ suvitāya navyase rakṣā mākir no aghaśaṁsa īśata ||

Pad Path

अद॑ब्धेभिः। स॒वि॒त॒रिति॑। पा॒युऽभिः॑। त्वम्। शि॒वेभिः॑। अ॒द्य। परि॑। पा॒हि॒। नः॒। गय॑म्। हिर॑ण्यऽजिह्वः। सु॒वि॒ताय॑। नव्य॑से। रक्ष॑। माकिः॑। नः॒। अ॒घऽशं॑सः। ई॒श॒त॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:71» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा और किससे क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सवितः) अच्छे कामों में प्रेरणा देनेवाले राजन् ! (त्वम्) आप (अद्य) अब (अदब्धेभिः) न नष्ट करने वा न नष्ट होने और (शिवेभिः) सुख करने वा मङ्गल विधान करनेवाले (पायुभिः) रक्षा के निमित्तों से (नः) हमारे (गयम्) सन्तान, धन और घर की (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा करो तथा (हिरण्यजिह्वः) सुवर्ण के समान सत्य से जिसकी वाणी प्रकाशित है ऐसे होते हुए (नव्यसे) अतीव नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये हमारे पुत्रादिकों की (रक्षा) रक्षा करो जैसे (अघशंसः) चोर (नः) हम लोगों के प्रति (माकिः) न (ईशत) विघ्नों के करने को समर्थ हो, वैसा करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा प्रयत्न के साथ प्रजाओं की अच्छे प्रकार रक्षा कर डाकुओं को मारे, वही नवीन-नवीन ऐश्वर्य्य को उत्पन्न कर निरन्तर प्रजाजनों का प्यारा और धार्मिक हो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशः केन किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे सवितस्त्वमद्याऽदब्धेभिः शिवेभिः पायुभिर्नो गयं परि पाहि हिरण्यजिह्वः सन्नव्यसे सुविताय नो गयं रक्षा यथाऽघशंसो नो माकिरीशत तथा विधेहि ॥३॥

Word-Meaning: - (अदब्धेभिः) अहिंसिकैरहिंसितैर्वा (सवितः) सत्कर्मसु प्रेरक राजन् (पायुभिः) रक्षणैः (त्वम्) (शिवेभिः) सुखकारकैर्मङ्गलविधायकैः (अद्य) इदानीम् (परि) सर्वतः (पाहि) रक्ष (नः) अस्माकम् (गयम्) गमयपत्यं धनं गृहं वा। गय इत्यपत्यनाम। (निघं०२.२) धननाम (निघं०२.१०) गृहनाम च (निघं०३.४)। (हिरण्यजिह्वः) हिरण्यमिव सत्येन सुप्रकाशिता वाणी यस्य सः (सुविताय) ऐश्वर्याय (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय (रक्षा) (माकिः) निषेधे (नः) अस्माकम् (अघशंसः) स्तेनः (ईशत) विघ्नानां ईश्वरो भवेत् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा प्रयत्नेन प्रजाः संरक्ष्य दस्य्वादीन् हन्यात् स एव नवीनं नवीनमैश्वर्यं जनयित्वा सततं प्रजाप्रियो धार्मिकः स्यात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा प्रयत्नपूर्वक प्रजेचे चांगल्याप्रकारे रक्षण करून दुष्टांना मारतो तोच नवनवीन ऐश्वर्य उत्पन्न करून सतत प्रजेचा प्रिय व धार्मिक होतो. ॥ ३ ॥