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वि यो रजां॒स्यमि॑मीत सु॒क्रतु॑र्वैश्वान॒रो वि दि॒वो रो॑च॒ना क॒विः। परि॒ यो विश्वा॒ भुव॑नानि पप्र॒थेऽद॑ब्धो गो॒पा अ॒मृत॑स्य रक्षि॒ता ॥७॥

English Transliteration

vi yo rajāṁsy amimīta sukratur vaiśvānaro vi divo rocanā kaviḥ | pari yo viśvā bhuvanāni paprathe dabdho gopā amṛtasya rakṣitā ||

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Pad Path

वि। यः। रजां॒सि। अमि॑मीत। सु॒ऽक्रतुः॑। वै॒श्वा॒न॒रः। वि। दि॒वः। रो॒च॒ना। क॒विः। परि॑। यः। विश्वा॑। भुव॑नानि। प॒प्र॒थे। अद॑ब्धः। गो॒पाः। अ॒मृत॑स्य। र॒क्षि॒ता ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:7» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:7 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर जगदीश्वर कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! (यः) जो जगदीश्वर (वैश्वानरः) सम्पूर्ण मनुष्यों का हित करनेवाला (सुक्रतुः) उत्तम कर्म जिसके वह (कविः) उत्तम बुद्धिवाला ईश्वर (दिवः) प्रकाशमान सूर्य्य के (रोचना) प्रकाशरूप (रजांसि) लोकों को (वि) विशेष करके (अमिमीत) निर्मित करता तथा (यः) जो (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) भुवनों को (परि) सब ओर से (पप्रथे) विस्तारयुक्त करता है वह (अमृतस्य) मोक्ष का (गोपाः) पालन करनेवाला (अदब्धः) अहिंसनीय और (रक्षिता) रक्षा करनेवाला (वि) विशेष करके निर्माण करता है ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर ने सम्पूर्ण लोक निर्मित किये हैं तथा जो सब का रक्षक है, उसकी सब उपासना करें ॥७॥ इस सूक्त में सब के हित करनेवाला, विद्वान् और ईश्वर के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सातवाँ सूक्त और नवमा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्जगदीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो वैश्वानरः सुक्रतुः कविरीश्वरो दिवो रोचना रजांसि व्यमिमीत यो विश्वा भुवनानि परि पप्रथे सोऽमृतस्य गोपा अदब्धो रक्षिता व्यमिमीत ॥७॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषेण (यः) जगदीश्वरः (रजांसि) (अमिमीत) निर्मिमीते (सुक्रतुः) शोभनानि प्रज्ञानानि कर्म्माणि यस्य सः (वैश्वानरः) (वि) (दिवः) प्रकाशमानस्य सूर्य्यस्य (रोचना) रोचनानि प्रदीपनानि (कविः) क्रान्तप्रज्ञः (परि) सर्वतः (यः) (विश्वा) अखिलानि (भुवनानि) (पप्रथे) प्रथयति विस्तृणाति (अदब्धः) अहिंसनीयः (गोपाः) पालकः (अमृतस्य) मोक्षस्य (रक्षिता) ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येन जगदीश्वरेण सर्वे लोका निर्मिता यः सर्वेषां रक्षिताऽस्ति तं सर्वे उपासीरन्निति ॥७॥ अत्र वैश्वानरविद्वदीश्वरगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या जगदीश्वराने सर्व गोल निर्माण केलेले असून जो सर्वांचा रक्षक आहे त्याची सर्वांनी उपासना करावी. ॥ ७ ॥