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वै॒श्वा॒न॒रस्य॒ विमि॑तानि॒ चक्ष॑सा॒ सानू॑नि दि॒वो अ॒मृत॑स्य के॒तुना॑। तस्येदु॒ विश्वा॒ भुव॒नाधि॑ मू॒र्धनि॑ व॒याइ॑व रुरुहुः स॒प्त वि॒स्रुहः॑ ॥६॥

English Transliteration

vaiśvānarasya vimitāni cakṣasā sānūni divo amṛtasya ketunā | tasyed u viśvā bhuvanādhi mūrdhani vayā iva ruruhuḥ sapta visruhaḥ ||

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Pad Path

वै॒श्वा॒न॒रस्य॑। विऽमि॑तानि। चक्ष॑सा। सानू॑नि। दि॒वः। अ॒मृत॑स्य। के॒तुना॑। तस्य॑। इत्। ऊँ॒ इति॑। विश्वा॑। भुव॑ना। अधि॑। मू॒र्धनि॑। व॒याःऽइ॑व। रु॒रु॒हुः॒। स॒प्त। वि॒ऽस्रुहः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:7» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस (वैश्वानरस्य) संपूर्ण नरों में विद्या और विनय से प्रकाशमान के (चक्षसा) प्रज्ञान से (विमितानि) विशेष करके परिमित (सानूनि) प्रान्त स्थानों को (दिवः) प्रकाशमान (अमृतस्य) नाश से रहित की (केतुना) बुद्धि से (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवना) लोक (सप्त) सात प्रकार के (विस्रुहः) विशेष करके सरकते जाते और (मूर्द्धनि) शिर पर अर्थात् ऊपर (वयाइव) पक्षियों के सदृश (अधि) अधिकतर (रुरुहुः) प्रकट होते हैं (तस्य) उसका (इत्) ही (उ) तर्क-वितर्क से सङ्ग करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्वान् जन परमेश्वर से रचे गए, पक्षियों सदृश अन्तरिक्ष में चलते हुए लोकों और उनकी गति को बुद्धि से विशेष करके जाने, वह विद्वानों के मस्तक के सदृश प्रशंसा करने योग्य होता है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्य वैश्वानरस्य चक्षसा विमितानि सानूनि दिवोऽमृतस्य केतुना विश्वा भुवना सप्त विस्रुहो मूर्द्धनि वयाइवाऽधि रुरुहुस्तस्येदु सङ्गं कुरुत ॥६॥

Word-Meaning: - (वैश्वानरस्य) विश्वेषु नरेषु विद्याविनयाभ्यां प्रकाशमानस्य (विमितानि) विशेषेण परिमितानि (चक्षसा) प्रज्ञानेन (सानूनि) प्रान्तदेशान् (दिवः) प्रकाशमानस्य (अमृतस्य) नाशरहितस्य (केतुना) प्रज्ञया (तस्य) (इत्) एव (उ) (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) भुवनानि लोकाः (अधि) (मूर्द्धनि) (वयाइव) पक्षिण इव (रुरुहुः) प्रादुर्भवन्ति (सप्त) सप्तविधाः (विस्रुहः) विसरन्ति विशेषेण गच्छन्ति ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यो विद्वान् जगदीश्वरनिर्मितान् पक्षिवदन्तरिक्षे चलतो लोकानेतेषां गतिं च विजानीयात् स विदुषां मूर्द्धेव प्रशंसनीयो जायते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्वान जगदीश्वराने निर्माण केलेल्या व पक्ष्यांप्रमाणे अंतरिक्षात फिरणाऱ्या गोलांच्या गतीला विशेष रूपाने जाणतात ते विद्वानांच्या मस्तकाप्रमाणे प्रशंसनीय असतात. ॥ ६ ॥