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मू॒र्धानं॑ दि॒वो अ॑र॒तिं पृ॑थि॒व्या वै॑श्वान॒रमृ॒त आ जा॒तम॒ग्निम्। क॒विं स॒म्राज॒मति॑थिं॒ जना॑नामा॒सन्ना पात्रं॑ जनयन्त दे॒वाः ॥१॥

English Transliteration

mūrdhānaṁ divo aratim pṛthivyā vaiśvānaram ṛta ā jātam agnim | kaviṁ samrājam atithiṁ janānām āsann ā pātraṁ janayanta devāḥ ||

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Pad Path

मू॒र्धान॑म्। दि॒वः। अ॒र॒तिम्। पृ॒थि॒व्याः। वै॒श्वा॒न॒रम्। ऋ॒ते। आ। जा॒तम्। अ॒ग्निम्। क॒विम्। स॒म्ऽराजम्। अति॑थिम्। जना॑नाम्। आ॒सन्। आ। पात्र॑म्। ज॒न॒य॒न्त॒। दे॒वाः ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:7» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले सातवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को कैसा अग्नि जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (देवाः) विद्वान् जन (दिवः) प्रकाश वा सूर्य्य के (मूर्द्धानम्) सर्वोपरि विराजमान (पृथिव्याः) पृथिवी की (अरतिम्) प्राप्ति को (ऋते) सत्य में (जातम्) प्रसिद्ध (कविम्) स्वच्छबुद्धियुक्त वा विद्वान् (सम्राजम्) भूगोल के राजा (जनानाम्) मनुष्यों के (अतिथिम्) आदर करने योग्य (पात्रम्) पालन करनेवाले (वैश्वानरम्) सम्पूर्ण मनुष्यों में अग्रणी (अग्निम्) अग्नि के सदृश वर्त्तमान को (आ, जनयन्त) प्रकट करते हैं, वे सुखी (आ, आसन्) अच्छे प्रकार हैं ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य परमात्मा के सदृश न्यायकारी होकर तथा अग्नि के सदृश विद्या और विनय से प्रकाशित हुए चकवर्त्तित्व को प्राप्त होते हैं, वे सुख देने को योग्य होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यैः कीदृशोऽग्निर्वेदितव्य इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये देवा दिवो मूर्द्धानं पृथिव्या अरतिमृते जातं कविं सम्राजं जनानामतिथिं पात्रं वैश्वानरमग्निमाऽऽजनयन्त ते सुखिन आऽऽसन् ॥१॥

Word-Meaning: - (मूर्द्धानम्) सर्वोपरिविराजमानम् (दिवः) प्रकाशस्य सूर्य्यस्य वा (अरतिम्) प्राप्तिम् (पृथिव्याः) (वैश्वानरम्) विश्वेषु नरेषु नायकम् (ऋते) सत्ये (आ) (जातम्) प्रसिद्धम् (अग्निम्) अग्निमिव वर्त्तमानम् (कविम्) क्रान्तप्रज्ञं विद्वांसं वा (सम्राजम्) भूगोलस्य राजानम् (अतिथिम्) पूजनीयम् (जनानाम्) मनुष्याणाम् (आसन्) सन्ति (आ) (पात्रम्) यः पतिस्तम् (जनयन्त) (देवाः) विद्वांसः ॥१॥
Connotation: - ये मनुष्याः परमात्मवन्न्यायकारिणो भूत्वा वह्निरिव विद्याविनयप्रकाशिताः सम्राज्यं प्राप्नुवन्ति ते सर्वान् सुखयितुमर्हन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सर्वांचे हितकर्ते, विद्वान व ईश्वराचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे परमेश्वराप्रमाणे न्यायकारी बनून अग्नीप्रमाणे विद्या व विनय यामुळे प्रसिद्ध होऊन चक्रवर्ती बनतात ती सर्वांना सुख देतात. ॥ १ ॥