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इन्द्रा॑विष्णू ह॒विषा॑ वावृधा॒नाग्रा॑द्वाना॒ नम॑सा रातहव्या। घृता॑सुती॒ द्रवि॑णं धत्तम॒स्मे स॑मु॒द्रः स्थः॑ क॒लशः॑ सोम॒धानः॑ ॥६॥

English Transliteration

indrāviṣṇū haviṣā vāvṛdhānāgrādvānā namasā rātahavyā | ghṛtāsutī draviṇaṁ dhattam asme samudraḥ sthaḥ kalaśaḥ somadhānaḥ ||

Pad Path

इन्द्रा॑विष्णू॒ इति॑। ह॒विषा॑। व॒वृ॒धा॒ना। अग्र॑ऽअद्वाना। नम॑सा। रा॒त॒ऽह॒व्या॒। घृता॑सुती॒ इति॒ घृत॑ऽआसुती। द्रवि॑णम्। ध॒त्त॒म्। अ॒स्मे इति॑। स॒मु॒द्रः। स्थः॒। क॒लशः॑। सो॒म॒ऽधानः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:69» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उन्हें कैसे सिद्ध कर क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे ऋत्विज् और यजमानो ! जैसे (हविषा) होमे हुए पदार्थ से (वावृधाना) निरन्तर शुद्धि से बढ़े वा बढ़ाने (अग्राद्वाना) अग्रभाग के भोगने को विभाग करनेवाले और (नमसा) अन्नादि पदार्थ से (रातहव्या) देने योग्य को देनेवाले (घृतासुती) सब ओर से जिनकी घी से प्रेरणा होती वे (इन्द्राविष्णू) वायु और सूर्य (अस्मे) हम लोगों में (द्रविणम्) धन और यश को धरते हैं, वैसे तुम (धत्तम्) धरो तथा (सोमधानः) और सोमादि ओषधि जिसमें स्थापन की जाती हैं और (सुमद्रः) अच्छे प्रकार जल तरंगे लेते हैं जिसमें वह अन्तरिक्ष वा मेघ (कलशः) घट के समान वर्त्तमान है, उसके समान (स्थः) होते हो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे ऋत्विग् और यजमान आदि जनो ! सुगन्धि और घृतादि पदार्थों के होम से वायु और सूर्य को शुद्ध कर सब के भाग्य की सिद्धि कर सब के सुख के बढ़ानेवाले होओ ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशौ सम्पाद्य किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे ऋत्विग्यजमानौ ! यथा हविषा वावृधानाग्राद्वाना नमसा रातहव्या घृतासुती इन्द्राविष्णू अस्मे द्रविणं धत्तस्तथा युवां धत्तं सोमधानः समुद्रः कलश इव स्थः ॥६॥

Word-Meaning: - (इन्द्राविष्णू) वायुसूर्य्यौ (हविषा) हुतेन द्रव्येण (वावृधाना) शुद्ध्या वर्द्धमानौ वर्धकौ (अग्राद्वाना) येऽग्रमदन्ति तद्विभाजकौ (नमसा) अन्नादिना (रातहव्या) दातव्यदानौ (घृतासुती) घृतेन समन्ताद् सुतिः प्रेरणं ययोस्तौ (द्रविणम्) धनं यशश्च (धत्तम्) (अस्मे) अस्मासु (समुद्रः) सम्यगापो द्रवन्ति यस्मिँस्तदन्तरिक्षं मेघो वा (स्थः) भवथः (कलशः) कलश इव जलेन पूर्णः (सोमधानः) सोमाद्योषधिगणा धीयन्ते यस्मिन् सः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे ऋत्विग्यजमानादयः ! सुगन्धिघृतादिहोमेन वायुसूर्य्यौ शुद्धौ कृत्वा सर्वेषां भाग्यं सम्पाद्य सर्वेषां सुखवर्धका भवन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे ऋत्विज व यजमान इत्यादींनो ! सुगंध व घृत इत्यादी पदार्थांचा होम करून वायू व सूर्याला शुद्ध करून सर्वांच्या भाग्याची सिद्धी करून सर्वांचे सुख वाढवा. ॥ ६ ॥