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आ वा॒मश्वा॑सो अभिमाति॒षाह॒ इन्द्रा॑विष्णू सध॒मादो॑ वहन्तु। जु॒षेथां॒ विश्वा॒ हव॑ना मती॒नामुप॒ ब्रह्मा॑णि शृणुतं॒ गिरो॑ मे ॥४॥

English Transliteration

ā vām aśvāso abhimātiṣāha indrāviṣṇū sadhamādo vahantu | juṣethāṁ viśvā havanā matīnām upa brahmāṇi śṛṇutaṁ giro me ||

Pad Path

आ। वा॒म्। अश्वा॑सः। अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसहः॑। इन्द्रा॑विष्णू॒ इति॑। स॒ध॒ऽमादः॑। व॒ह॒न्तु॒। जु॒षेथा॑म्। विश्वा॑। हव॑ना। म॒ती॒नाम्। उप॑। ब्रह्मा॑णि। शृ॒णु॒त॒म्। गिरः॑। मे॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:69» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस राजा को कौन प्राप्त होकर क्या करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्राविष्णु) वायु और सूर्य के तुल्य वर्त्तमान सभासेनाधीशो ! (वाम्) तुम दोनों जो (अश्वासः) महात्माजन (अभिमातिषाहः) अभिमानयुक्त शत्रुओं को सह सकते हैं वे (सधमादः) समान स्थान को (आ, वहन्तु) प्राप्त करें उन (मतीनाम्) मनुष्यों के (विश्वा) सब (हवना) देने लेने योग्य (ब्रह्माणि) धनों को (जुषेथाम्) सेवो और (मे) मेरी (गिरः) वाणियों को भी (उप, शृणुतम्) समीप में सुनो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! यदि बुद्धिमान्, अतीव बलवान् और शत्रुओं के बल के सहनेवाले मनुष्य आपको प्राप्त होवें तो वे सब ऐश्वर्य्य और विद्या को संसार में विस्तारें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तं राजानं के प्राप्य किं कुर्वन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्राविष्णू इव सभासेनेशौ ! वां येऽश्वासोऽभिमातिषाहः सधमाद आ वहन्तु तेषां मतीनां विश्वा हवना ब्रह्माणि जुषेथां मे गिरश्चोप शृणुतम् ॥४॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (वाम्) युवाम् (अश्वासः) महान्तः (अभिमातिषाहः) येऽभिमानयुक्ताञ्छत्रून् सोढुं शक्नुवन्ति (इन्द्राविष्णू) वायुसूर्य्यौ (सधमादः) समानस्थानानि (वहन्तु) (जुषेथाम्) (विश्वा) सर्वाणि (हवना) दातुमादातुमर्हाणि (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (उप) सामीप्ये (ब्रह्माणि) धनानि (शृणुतम्) (गिरः) वाणीः (मे) मम ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यदि धीमन्तो बलिष्ठाः शत्रुबलसोढारो जनास्त्वां प्राप्नुयुस्तर्हि सर्वमैश्वर्यं विद्यां च जगति प्रसारयन्तु ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जर बुद्धिमान, अत्यंत बलवान व शत्रूंचे बल सहन करणारी माणसे तुला मिळतील तर ती संपूर्ण ऐश्वर्य व विद्या जगात प्रसारित करतील. ॥ ४ ॥