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उ॒त नः॑ सुत्रा॒त्रो दे॒वगो॑पाः सू॒रिभ्य॑ इन्द्रावरुणा र॒यिः ष्या॑त्। येषां॒ शुष्मः॒ पृत॑नासु सा॒ह्वान्प्र स॒द्यो द्यु॒म्ना ति॒रते॒ ततु॑रिः ॥७॥

English Transliteration

uta naḥ sutrātro devagopāḥ sūribhya indrāvaruṇā rayiḥ ṣyāt | yeṣāṁ śuṣmaḥ pṛtanāsu sāhvān pra sadyo dyumnā tirate taturiḥ ||

Pad Path

उ॒त। नः॒। सु॒ऽत्रा॒तः। दे॒वऽगो॑पाः। सू॒रिऽभ्यः॑। इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒। र॒यिः। स्या॒त्। येषा॑म्। शुष्मः॑। पृत॑नासु। सा॒ह्वान्। प्र। स॒द्यः। द्यु॒म्ना। ति॒रते॑। ततु॑रिः ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:68» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन राजा योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्रावरुणा) वायु और बिजुली के समान वर्त्तमान प्रशंसित राजा ! (येषाम्) जिन शूरवीरों की (पृतनासु) सेनाओं में (शुष्मः) बलवान् (साह्वान्) सहनशील (ततुरिः) उत्तीर्ण होनेवाला सेनापति वर्त्तमान है तथा जो (सद्यः) शीघ्र (द्युम्ना) धन और यशों को (प्र, तिरते) उत्तमता से प्राप्त होता है वा जिसके पराक्रम से (रयिः) लक्ष्मी (स्यात्) हो (उत) और (नः) हम लोग (सूरिभ्यः) विद्वान् हैं उनके लिये (सुत्रात्रः) जो अच्छों की रक्षा करनेवालों की रक्षा करनेवाला (देवगोपाः) विद्वानों का रक्षक हो, वही राजा होने योग्य है ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो सूर्य के समान प्रतापी, पवन के समान बलवान्, विद्यावान् के समान नम्रता और शूरवीरों की रक्षा करनेवाले हों, वे सर्वत्र शीघ्र शत्रुओं को जीत के यशस्वी होकर धनवान् होते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः को राजाऽर्हो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्रावरुणेव वर्त्तमान राजन् ! येषां पृतनासु शुष्मः साह्वान् ततुरिः सेनेशो वर्त्तते यः सद्यो द्युम्नाः प्र तिरते यस्य पराक्रमेण रयिः स्यादुत नः सूरिभ्यः सुत्रात्रो देवगोपा भवेत्स एव राजा भवितुमर्हति ॥७॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (नः) अस्मभ्यम् (सुत्रात्रः) यस्सुष्ठु रक्षकान् रक्षति (देवगोपाः) यो देवान् विदुषो गोपायति (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (इन्द्रावरुणा) वायुविद्युद्वद् (रयिः) श्रीः (स्यात्) (येषाम्) (शुष्मः) बलयुक्तः सेनेशः (पृतनासु) शूरवीरसेनासु (साह्वान्) सोढा (प्र) (सद्यः) (द्युम्ना) धनानि यशांसि वा (तिरते) प्राप्नोति (ततुरिः) तरिता ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये सूर्य्यवत् प्रतापिनो वायुवद्बलिष्ठा विद्याविद्वद्विनयशूरवीररक्षकाः स्युस्ते सर्वत्र क्षिप्रं शत्रून् विजित्य यशस्विनो भूत्वा धनवन्तो जायन्ते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे सूर्याप्रमाणे पराक्रमी, वायूप्रमाणे बलवान, विद्यावानाप्रमाणे नम्र व शूरवीरांचे रक्षण करणारे असतात ते ताबडतोब सर्वत्र शत्रूंना जिंकून यशस्वी होऊन धनवान होतात. ॥ ७ ॥