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इन्द्रा॑वरुणा॒ मधु॑मत्तमस्य॒ वृष्णः॒ सोम॑स्य वृष॒णा वृ॑षेथाम्। इ॒दं वा॒मन्धः॒ परि॑षिक्तम॒स्मे आ॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑ मादयेथाम् ॥११॥

English Transliteration

indrāvaruṇā madhumattamasya vṛṣṇaḥ somasya vṛṣaṇā vṛṣethām | idaṁ vām andhaḥ pariṣiktam asme āsadyāsmin barhiṣi mādayethām ||

Pad Path

इन्द्रा॑वरुणा। मधु॑मत्ऽतमस्य। वृष्णः॑। सोम॑स्य। वृ॒ष॒णा॒। आ। वृ॒षे॒था॒म्। इ॒दम्। वा॒म्। अन्धः॑। परि॑ऽसिक्तम्। अ॒स्मे इति॑। आ॒ऽसद्य। अ॒स्मिन्। ब॒र्हिषि॑। मा॒द॒ये॒था॒म् ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:68» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करके क्या करावें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्रावरुणा) बिजुली और वायु के समान वर्त्तमान (वृषणा) बलवान् राजा प्रजाजनो ! तुम (मधुमत्तमस्य) अतीव मधुरादिगुणयुक्त (वृष्णः) बल करनेवाले (सोमस्य) बड़ी बड़ी ओषधियों के रसों के सेवने से (आ, वृषेथाम्) बलिष्ठ होओ जिन (वाम्) तुम दोनों का (इदम्) यह (परिषिक्तम्) सब ओर से सींचा हुआ (अन्धः) अन्न है वे तुम (अस्मे) हम लोगों में वा हम को (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) अवकाश में (आसद्य) बैठ के (मादयेथाम्) आनन्दित करो ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सोमलतादि रसयुक्त अन्न वा पान से आप आनन्दित होकर हमको आनन्दित करते हैं, वे ही सब से सत्कार करने योग्य होते हैं ॥११॥ इस सूक्त में वरुण के समान राजप्रजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़सठवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ किं कृत्वा किं कारयेतामित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्रावरुणेव वृषणा ! युवां मधुमत्तमस्य वृष्णः सोमस्य सेवनेना वृषेथां ययोर्वामिदं परिषिक्तमन्धोऽस्ति तौ युवामस्मे अस्मिन् बर्हिष्यासद्याऽस्मान् मादयेथाम् ॥११॥

Word-Meaning: - (इन्द्रावरुणा) विद्युद्वायुवद्वर्त्तमानौ राजप्रजाजनौ (मधुमत्तमस्य) अतिशयेन मधुरादिगुणयुक्तस्य (वृष्णः) बलकरस्य (सोमस्य) महौषधिरसस्य (वृषणा) बलिष्ठौ (आ) (वृषेथाम्) बलिष्ठौ भवेथाम् (इदम्) (वाम्) (अन्धः) अन्नम् (परिषिक्तम्) सर्वतः सिक्तम् (अस्मे) अस्मास्वस्मान् वा (आसद्य) उपविश्य (अस्मिन्) (बर्हिषि) अवकाशे (मादयेथाम्) आनन्दयतम् ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सोमलतादिरसेन युक्तेनान्नेन पानेन वा स्वयमानन्द्याऽस्मानानन्दयन्ति त एव सर्वैः सत्कर्त्तव्या जायन्त इति ॥११॥ अस्मिन् सूक्ते इन्द्रावरुणवद्राजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टषष्टितमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सोमलता इत्यादी रसयुक्त अन्नपान करून स्वतः आनंदित होऊन आम्हाला आनंदित करतात त्यांचाच सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ११ ॥