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ता वि॒ग्रं धै॑थे ज॒ठरं॑ पृ॒णध्या॒ आ यत्सद्म॒ सभृ॑तयः पृ॒णन्ति॑। न मृ॑ष्यन्ते युव॒तयोऽवा॑ता॒ वि यत्पयो॑ विश्वजिन्वा॒ भर॑न्ते ॥७॥

English Transliteration

tā vigraṁ dhaithe jaṭharam pṛṇadhyā ā yat sadma sabhṛtayaḥ pṛṇanti | na mṛṣyante yuvatayo vātā vi yat payo viśvajinvā bharante ||

Pad Path

ता। वि॒ग्रम्। धै॒थे॒ इति॑। ज॒ठर॑म्। पृ॒णध्यै॑। आ। यत्। सद्म॑। सऽभृ॑तयः। पृ॒णन्ति॑। न। मृ॒ष्य॒न्ते॒। यु॒व॒तयः॑। अवा॑ताः। वि। यत्। पयः॑। वि॒श्व॒ऽजि॒न्वा॒। भर॑न्ते ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:67» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन किसके समान मेधावी विद्यार्थियों को धारण करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! जैसे (अवाताः) पतियों को न प्राप्त हुई (सभृतयः) समान पतियोंवाली (युवतयः) युवति स्त्रियाँ समान पतियों को (भरन्ते) धारण करतीं अर्थात् प्राप्त होतीं वे (न) नहीं (आ, पृणन्ति) पूरे सुख को प्राप्त होतीं क्योंकि और सौतें नहीं (मृष्यन्ते) सहती हैं (यत्) जो (सदम्) घर को सुखयुक्त करती हैं और (यत्) जो (पयः) जल के समान (वि) विविध प्रकार से सुख देती हैं तथा जो तुम दोनों (जठरम्) उदर में ठहरे हुए अग्नि को (पृणध्यै) सुखी करने के लिये (विग्रम्) बुद्धिमान् पुरुष को (धैथे) धारण करते हो। हे (विश्वजिन्वा) संसार की पुष्टि करनेवाले ! आप उन स्त्रियों तथा (ता) उन दोनों को निरन्तर सेवो ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे समान गुण, कर्म, स्वभाव रूप स्त्री-पुरुष अत्यन्त प्रीति से विवाह कर कभी विरोध नहीं करते हैं, वैसे ही विद्वान् जन और विद्यार्थीजन विद्वेष नहीं करते हैं, ऐसे प्रेम के साथ वर्त्तमान सब सदैव आनन्दित होते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के का इव मेधाविनौ विद्यार्थिनो धरन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यथाऽवाताः सभृतयो युवतयः समानान् पतीन् भरन्ते ता नापृणन्त्यन्याः सपत्नीर्न मृष्यन्ते यद्याः सद्म पृणन्ति यद्याः पय इव वि पृणन्ति तथा यौ युवां जठरं पृणध्यै विग्रं धैथे। हे विश्वजिन्वा ! त्वं ता तौ च सततं सेवस्व ॥७॥

Word-Meaning: - (ता) तौ (विग्रम्) मेधाविनम्। विग्र इति मेधाविनाम। (निघं०१३.१५) (धैथे) धारयथः (जठरम्) उदरस्थमग्निम् (पृणध्यै) सुखयितुम् (आ) (यत्) याः (सद्म) (सभृतयः) समाना भर्त्तारो यासां ताः (पृणन्ति) (न) निषेधे (मृष्यन्ते) सहन्ते (युवतयः) प्राप्तयुवावस्थाः स्त्रियः (अवाताः) पतीनप्राप्ताः (वि) (यत्) याः (पयः) उदकम् (विश्वजिन्वा) विश्वपोषक। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (भरन्ते) ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा समानगुणकर्मस्वभावरूपाः स्त्री-पुरुषा अत्यन्तप्रीत्या विवाहं कृत्वा कदाचिन्न विरुध्यन्ति तथैव विद्वांसो विद्यार्थिनश्च न विद्विषन्त्येवं प्रेम्णा सह वर्त्तमानास्सर्वे सदाऽऽनन्दिता जायन्ते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे समान गुण, कर्म, स्वभावरूपी स्त्री-पुरुष अत्यंत प्रीतीने विवाह करून कधी विरोध करीत नाहीत तसेच विद्वान लोक व विद्यार्थी द्वेष करीत नाहीत. ते सर्व प्रेमाने आनंदात राहतात. ॥ ७ ॥