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ता हि क्ष॒त्रं धा॒रये॑थे॒ अनु॒ द्यून्दृं॒हेथे॒ सानु॑मुप॒मादि॑व॒ द्योः। दृ॒ळ्हो नक्ष॑त्र उ॒त वि॒श्वदे॑वो॒ भूमि॒माता॒न्द्यां धा॒सिना॒योः ॥६॥

English Transliteration

tā hi kṣatraṁ dhārayethe anu dyūn dṛṁhethe sānum upamād iva dyoḥ | dṛḻho nakṣatra uta viśvadevo bhūmim ātān dyāṁ dhāsināyoḥ ||

Pad Path

ता। हि। क्ष॒त्रम्। धा॒रये॑थे॒ इति॑। अनु॑। द्यून्। दृं॒हेथे॒ इति॑। सानु॑म्। उ॒प॒मात्ऽइ॑व। द्योः। दृ॒ळ्हः। नक्ष॑त्रः। उ॒त। वि॒श्वऽदे॑वः। भूमि॑म्। आ। अ॒ता॒न्। द्याम्। धा॒सिना॑। आ॒योः ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:67» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन सङ्ग करने योग्य और सुख के बढ़ानेवाले हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! जो (हि) जिस कारण से हैं (ता) वे तुम दोनों (अनु, द्यून्) प्रतिदिन (क्षत्रम्) राज्य वा धन को (धारयेथे) धारण करते हो तथा (द्योः) सूर्य की (उपमादिव) उपमा से जैसे वैसे (सानुम्) शिखर को (दृंहेथे) बढ़ाते हो जिनके सङ्ग से (विश्वदेवः) सब का प्रकाश करनेवाला (दृळ्हः) दृढ़ (उत) और (नक्षत्रः) जो नहीं नष्ट होता ऐसा होता हुआ (भूमिम्) भूमि और (द्याम्) मनोहर विद्या को प्राप्त होकर (धासिना) अन्न से (आयोः) जीवन को बढ़ाता है, उन पूर्वोक्त दोनों तथा उसको जो (आ, अतान्) सब ओर से प्रकाशित करें, वे निरन्तर सुखी होते हैं ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अध्यापक और उपदेशक प्रतिदिन सूर्य के समान विद्याव्यवहार को सम्यक् प्रकाशित कर राज्य, धन और आयु को बढ़ाते, सब को सुख की धारणा कराते, जिनको प्राप्त होकर सब जन विद्वान् होते हैं, उनका सङ्ग निरन्तर करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः केऽत्र सङ्गन्तव्याः सुखवर्धकाश्च सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यौ हि ता अनु द्यून् क्षत्रं धारयेथे द्योरुपमादिव सानुं दृंहेथे ययोः सङ्गेन विश्वदेवो दृळ्ह उत नक्षत्रः सन् भूमिं द्यां प्राप्य धासिनाऽऽयोर्वर्धकोऽस्ति तौ तञ्च य आऽतांस्ते सततं सुखिनो जायन्ते ॥६॥

Word-Meaning: - (ता) तौ (हि) यतः (क्षत्रम्) राज्यं धनं वा (धारयेथे) (अनु) (द्यून्) दिवसान् (दृंहेथे) वर्धयथः (सानुम्) शिखरम् (उपमादिव) (द्योः) सूर्यस्य (दृळ्हः) (नक्षत्रः) यो न क्षीयते (उत) उत (विश्वदेवः) विश्वेषां सर्वेषां देवः प्रकाशकः (भूमिम्) (आ) (अतान्) समन्तादतेयुः प्रकाशयेयुः (द्याम्) कमनीयां विद्याम् (धासिना) अन्नेन (आयोः) जीवनस्य ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येऽध्यापकोपदेशकाः प्रतिदिनं सूर्यवद्विद्याव्यवहारं सम्प्रकाश्य राज्यं धनमायुश्च वर्धयन्ति सर्वान् सुखे धारयन्ति यान् प्राप्य सर्वे जना विद्वांसो जायन्ते तत्सङ्गं सततं कुरुत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे अध्यापक व उपदेशक प्रत्येक दिवशी सूर्याप्रमाणे विद्या व्यवहार सम्यक प्रकट करतात. राज्य धन, आयुष्य वाढवितात व सर्वांना सुख देतात. त्यांच्या संगतीने सर्व विद्वान बनतात, त्यांची सतत संगती धरा. ॥ ६ ॥