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न य ईष॑न्ते ज॒नुषोऽया॒ न्व१॒॑न्तः सन्तो॑ऽव॒द्यानि॑ पुना॒नाः। निर्यद्दु॒ह्रे शुच॒योऽनु॒ जोष॒मनु॑ श्रि॒या तन्व॑मु॒क्षमा॑णाः ॥४॥

English Transliteration

na ya īṣante januṣo yā nv antaḥ santo vadyāni punānāḥ | nir yad duhre śucayo nu joṣam anu śriyā tanvam ukṣamāṇāḥ ||

Pad Path

न। ये। ईष॑न्ते। ज॒नुषः॑। अया॑। नु। अ॒न्तरिति॑। सन्तः॑। अ॒व॒द्यानि॑। पु॒ना॒नाः। निः। यत्। दु॒ह्रे। शुच॑यः। अनु॑। जोष॑म्। अनु॑। श्रि॒या। त॒न्व॑म्। उ॒क्षमा॑णाः ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:66» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन श्रेष्ठ होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (ये) जो (जनुषः) जन्मों को (न) नहीं (ईषन्ते) नष्ट करते किन्तु (अया) इस नीति से (अन्तः) बीच में (सन्तः) सत्पुरुष हुए (अवद्यानि) निन्द्यकर्मों को (नु) शीघ्र छोड़ के (पुनानाः) शरीर को पवित्र करते हुए होते हैं और (यत्) जो (शुचयः) पवित्र जन (अनु, जोषम्) सेवा के अनुकूल (श्रिया) लक्ष्मी से (तन्वम्) शरीर को (उक्षमाणाः) सेवन करते हुए (अनु, निर्, दुह्रे) अनुक्रम से जन्म पूरा करते हैं, वे धन्य होते हैं ॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य ब्रह्मचर्यादि व्रतों को छोड़ मूढ़ होकर, शीघ्र विवाह कर, नपुंसक के अर्थात् हीजड़ा के समान होकर, निर्बल, रोगी, और लम्पट, मनुष्यों के बीच जिसकी कहावत हो रही हो तथा दुष्टव्यसन जिसको होता है, ऐसे पुरुष सौ वर्ष से पहिले ही शरीर को नष्ट-भ्रष्ट कर मनुष्य शरीर के फल को न पाकर दुर्भाग्यवश से निष्फल होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

के श्रेष्ठा जायन्त इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये जनुषो नेषन्तेऽया नीत्याऽन्तः सन्तोऽवद्यानि नु विहाय पुनाना भवन्ति यद्ये शुचयोऽनु जोषं श्रिया तन्वमुक्षमाणा अनु निर्दुह्रे ते धन्या भवन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (ये) (ईषन्ते) हिंसन्ति (जनुषः) जन्मानि (अया) अनया (नु) (अन्तः) मध्ये (सन्तः) सत्पुरुषाः (अवद्यानि) निन्द्यानि कर्माणि (पुनानाः) पवित्रयन्तः (निः) निरन्तरम् (यत्) ये (दुह्रे) दुहन्ति (शुचयः) पवित्राः (अनु) (जोषम्) सेवनम् (अनु) (श्रिया) लक्ष्म्या (तन्वम्) शरीरम् (उक्षमाणाः) सेवमानाः ॥४॥
Connotation: - ये मनुष्या ब्रह्मचर्यादीनि व्रतानि विहाय मूढा भूत्वा सद्यो विवाहं कृत्वा नपुंसकवद्भूत्वा निर्बला रोगिणो लम्पटा नृशंसा दुर्व्यसनिनो भवन्ति ते शततमाद्वर्षात् पूर्वमेव शरीरं विनाश्य मनुष्यशरीरफलमप्राप्य दुर्भाग्यवशान्निष्फला जायन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे ब्रह्मचर्य व्रताचा त्याग करून मूढ बनतात व लवकर विवाह करतात ती नपुंसकाप्रमाणे निर्बल, रोगी, लंपट, नृशंस, दुर्व्यसनी होतात. त्यांचे शरीर शंभर वर्षांपूर्वीच नष्ट भ्रष्ट होते व मनुष्य शरीराचे फळ प्राप्त न होता दुर्भाग्याने निष्फळ ठरतात. ॥ ४ ॥