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तं वृ॒धन्तं॒ मारु॑तं॒ भ्राज॑दृष्टिं रु॒द्रस्य॑ सू॒नुं ह॒वसा वि॑वासे। दि॒वः शर्धा॑य॒ शुच॑यो मनी॒षा गि॒रयो॒ नाप॑ उ॒ग्रा अ॑स्पृध्रन् ॥११॥

English Transliteration

taṁ vṛdhantam mārutam bhrājadṛṣṭiṁ rudrasya sūnuṁ havasā vivāse | divaḥ śardhāya śucayo manīṣā girayo nāpa ugrā aspṛdhran ||

Pad Path

तम्। वृ॒धन्त॑म्। मारु॑तम्। भ्राज॑त्ऽऋष्टिम्। रु॒द्रस्य॑। सू॒नुम्। ह॒वसा॑। आ। वि॒वा॒से॒। दि॒वः। शर्धा॑य। शुच॑यः। म॒नी॒षा। गि॒रयः॑। न। आपः॑। उ॒ग्राः। अ॒स्पृ॒ध्र॒न् ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:66» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किनके साथ कैसा जन राज्य का अधिकारी करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (शुचयः) पवित्र (मनीषाः) मनस्वी अर्थात् उत्साही मनवाले (उग्राः) तेजस्वी (गिरयः) मेघ और (आपः) जलों के (न) समान (दिवः) मनोहर पदार्थ के (शर्धाय) बल के लिये (अस्पृध्रन्) स्पर्द्धा करें उनके साथ (वृधन्तम्) आप बढ़ते वा दूसरों को बढ़ाते हुए (मारुतम्) पवनों की विद्या जाननेवाले (भ्राजदृष्टिम्) प्रकाशमान दृष्टियुक्त (रुद्रस्य) किया है चवालीस वर्ष पर्य्यन्त ब्रह्मचर्य्य जिसने उसके (तम्) उस (सुनूम्) पुत्र को (हवसा) लेने के व्यवहार से मैं (आ, विवासे) सेवता हूँ ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य मेघ के समान उन्नति करने, प्रजा के पालने, जल के समान पुष्टि करनेवाले, पवित्र आशययुक्त, तेजस्वी और मनोहर बल के बढ़ानेवाले हों, उनके साथ यदि राजा राज्यशिक्षा करे तो कहीं पराजय और अपकीर्ति न हो ॥११॥ इस सूक्त में पवनों के गुणों के समान विद्वानों और वीरों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छियासठवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कैः सह कीदृशो जनो राज्याऽधिकारी कर्त्तव्य इत्याह ॥

Anvay:

ये शुचयो मनीषा उग्रा गिरय आपो न दिवः शर्धायास्पृध्रंस्तैस्सह वृधन्तं मारुतं भ्राजदृष्टिं रुद्रस्य तं सूनुं हवसाऽहमा विवासे ॥११॥

Word-Meaning: - (तम्) (वृधन्तम्) वर्धमानं वर्धयन्तं वा (मारुतम्) मरुतामिमम् (भ्राजदृष्टिम्) भ्राजद् ऋष्टिः सम्प्रेक्षणं यस्य तम् (रुद्रस्य) कृतचतुश्चत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्य्यस्य (सूनुम्) पुत्रम् (हवसा) आदानेन (आ) (विवासे) सेवे (दिवः) कमनीयस्य (शर्धाय) बलाय (शुचयः) पवित्राः (मनीषाः) मनस्विनः (गिरयः) मेघाः (न) इव (आपः) जलानि (उग्राः) तेजस्विनः (अस्पृध्रन्) स्पर्द्धन्ताम् ॥११॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये मनुष्या मेघवदुन्नताः प्रजापालका जलवत्पोषकाः पवित्राशयास्तेजस्विनः कमनीयस्य बलस्य वर्धकाः स्युस्तैस्सह यदि राजा राज्यशासनं कुर्यात्तर्हि कुत्रापि पराजयोऽपकीर्त्तिश्च न जायेतेति ॥११॥ अत्र मरुद्गुणवद्विद्वद्वीरपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्षष्टितमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जी माणसे मेघाची वृद्धी करणारी, प्रजापालन करणारी, जलाप्रमाणे पुष्ट करणारी, पवित्र आशययुक्त, तेजस्वी, सुंदर, बल वाढविणारी असतात त्यांच्याबरोबर जर राजाने राज्य शिक्षण घेतले तर कुठेही पराजय, अपकीर्ती होणार नाही. ॥ ११ ॥