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उत्ते॒ वय॑श्चिद्वस॒तेर॑पप्त॒न्नर॑श्च॒ ये पि॑तु॒भाजो॒ व्यु॑ष्टौ। अ॒मा स॒ते व॑हसि॒ भूरि॑ वा॒ममुषो॑ देवि दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य ॥६॥

English Transliteration

ut te vayaś cid vasater apaptan naraś ca ye pitubhājo vyuṣṭau | amā sate vahasi bhūri vāmam uṣo devi dāśuṣe martyāya ||

Pad Path

उत्। ते॒। वयः॑। चि॒त्। व॒स॒तेः। अ॒प॒प्त॒न्। नरः॑। च॒। ये। पि॒तु॒ऽभाजः॑। विऽउ॑ष्टौ। अ॒मा। स॒ते। व॒ह॒सि॒। भूरि॑। वा॒मम्। उषः॑। दे॒वि॒। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:64» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे स्त्री-पुरुष परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (उषः) उषा के समान वर्त्तमान (देवि) मनोहररूपवती जो तू (व्युष्टौ) विविध गुणों से सेवा करने योग्य प्रभातवेला में (सते) वर्त्तमान (दाशुषे) सुख देनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य पति के लिये (अमा) घरों को (भूरि) बहुत (वामम्) प्रशंसित कर्म जैसे हों, वैसे (वहसि) प्राप्त होती उस (ते) तेरे (ये) जो (पितुभाजः) उत्तम अन्न के सेवनेवाले (नरः) मनुष्य हैं, वे (च) भी (वसतेः) निवास के सम्बन्ध में (वयः) पक्षियों के (चित्) समान तेरे सुरूप को देख (उत्, अपप्तन्) उड़ते हैं, उनमें से स्वयंवर विधि से सर्वथा प्रसन्न पति को तू प्राप्त हो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो वधू और वर स्वयंवर विवाह से परस्पर प्रसन्न होकर विवाह करते हैं, वे सूर्य्य और उषा के समान गृहाश्रम को उत्तम आचार से अच्छे प्रकार प्रकाशित कर सर्वदा आनन्दित होते हैं ॥६॥ इस सूक्त में उषा और सूर्य के तुल्य स्त्रियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौसठवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते स्त्रीपुरुषाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे उषर्वद्वर्त्तमाने देवि ! या त्वं व्युष्टौ सेवमानाय सते दाशुषे मर्त्याय पत्येऽमा भूरि वामं वहसि तस्यास्ते ये पितुभाजो नरस्ते च वसतेर्वयश्चित्ते सुरूपं दृष्ट्वोदपप्तंस्तेषां मध्यात् स्वयंवरविधानेन सर्वथा प्रसन्नं पतिं त्वं प्राप्नुयाः ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) (ते) तव (वयः) पक्षिणः (चित्) इव (वसतेः) (अपप्तन्) उड्डीयन्ते (नरः) नेतारः (च) (ये) (पितुभाजः) उत्तमान्नसेविनः (व्युष्टौ) विविधैर्गुणैः सेवमानायामुषसि (अमा) गृहाणि (सते) वर्त्तमानाय पत्ये (वहसि) प्राप्नोषि (भूरि) बहु (वामम्) प्रशस्तम् (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (देवि) कमनीये (दाशुषे) सुखदात्रे (मर्त्याय) मनुष्याय ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये वधूवरा स्वयंवरविवाहेन परस्परप्रसन्ना भूत्वा विवाहं कुर्वन्ति ते सूर्योषर्वद्गृहाश्रममुत्तमेनाचारेण सम्प्रकाश्य सदाऽऽनान्दिता भवन्तीति ॥६॥ अत्रोषःसूर्यवत्स्त्रीगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥६॥ इति चतुःषष्टितमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे वधू-वर परस्पर प्रसन्न होऊन स्वयंवर विवाह करतात ते सूर्य व उषेप्रमाणे गृहस्थाश्रम उत्तम आचरणाने पार पाडतात व सदैव आनंदित राहतात. ॥ ६ ॥