Go To Mantra

उ॒त म॑ ऋ॒ज्रे पुर॑यस्य र॒घ्वी सु॑मी॒ळ्हे श॒तं पे॑रु॒के च॑ प॒क्वा। शा॒ण्डो दा॑द्धिर॒णिनः॒ स्मद्दि॑ष्टी॒न्दश॑ व॒शासो॑ अभि॒षाच॑ ऋ॒ष्वान् ॥९॥

English Transliteration

uta ma ṛjre purayasya raghvī sumīḻhe śatam peruke ca pakvā | śāṇḍo dād dhiraṇinaḥ smaddiṣṭīn daśa vaśāso abhiṣāca ṛṣvān ||

Pad Path

उ॒त। मे॒। ऋ॒ज्रे इति॑। पुर॑यस्य। र॒घ्वी इति॑। सु॒ऽमी॒ळ्हे। श॒तम्। पे॒रु॒के। च॒। प॒क्वा। शा॒ण्डः। दा॒त्। हि॒र॒णिनः॑। स्मत्ऽदि॑ष्टीन्। दश॑। व॒शासः॑। अ॒भि॒ऽसाचः॑। ऋ॒ष्वान् ॥९॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:63» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:9


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो मनुष्य (अभिषाचः) सम्मुख सम्बन्ध करते वा (वशासः) वश को प्राप्त होते हैं तथा (पुरयस्य) जो पहिले प्राप्त होता उस (मे) मेरे (ऋज्रे) कोमलता से प्रिय (सुमीळ्हे) सुन्दर सेचने योग्य (उत) और (पेरुके) पालन करनेवाले व्यवहार में (रघ्वी) छोटी क्रिया (पक्वा, च) और पके फलों को (शाण्डः) सूक्ष्मता करनेवाला (दात्) देता है उन (हिरणिनः) हिरणवाले (स्मद्दिष्टीन्) प्रशंसित दर्शनवाले (ऋष्वान्) बड़े-बड़े (दश) दश घोड़े वा रथों को वा (शतम्) और सैकड़ों को मैं प्राप्त होऊँ ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो मेरे वशीभूत, प्रीतियुक्त, महान् सहायक होते हैं, उनके आधीन मैं भी होऊँ, इस प्रकार परस्पर का वशभाव हुए पीछे उत्तम असङ्ख्य कार्य्य कर सकूँ ॥९॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

येऽभिषाचो वशासः पुरयस्य म ऋज्रे सुमीळ्ह उत पेरुके रघ्वी पक्वा च शाण्डो दात् तान् हिरणिनः स्मद्दिष्टीनृष्वान् दश शतं चाऽहं प्राप्नुयाम् ॥९॥

Word-Meaning: - (उत) (मे) मम (ऋज्रे) ऋजुप्रिये (पुरयस्य) यः पुरोऽयते प्राप्नोति तस्य (रघ्वी) पक्वानि (शाण्डः) यः श्यति तनूकरोति तथाऽयम्। अत्र शो तनूकरण इत्यस्मादौणादिकोऽडच् प्रत्ययः। (दात्) ददाति (हिरणिनः) हिरणाः सन्ति येषां तान् (स्मद्दिष्टीन्) प्रशंसितदर्शनान् (दश) एतत्सङ्ख्याकानश्वान् रथादीन् वा (वशासः) ये वशं प्राप्ताः (अभिषाचः) ये आभिमुख्येन सचन्ति ते (ऋष्वान्) महतः। ऋष्व इति महन्नाम। (निघं०३.३) ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये मम वशीभूताः प्रीतियुक्ता महान्तः सहाया भवन्ति तदधीनोऽहमपि भवेयमेवं परस्परे वशत्वे सत्युत्तमान्यसंख्यानि कार्याणि कर्तुं शक्नुयाम् ॥९॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जे मला वश असून अत्यंत प्रिय सहायक असतात, मीही त्यांच्या अधीन होऊन परस्पर वशीभूत होऊन असंख्य उत्तम कार्य करू शकेन. ॥ ९ ॥