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पु॒रु हि वां॑ पुरुभुजा दे॒ष्णं धे॒नुं न॒ इषं॑ पिन्वत॒मस॑क्राम्। स्तुत॑श्च वां माध्वी सुष्टु॒तिश्च॒ रसा॑श्च॒ ये वा॒मनु॑ रा॒तिमग्म॑न् ॥८॥

English Transliteration

puru hi vām purubhujā deṣṇaṁ dhenuṁ na iṣam pinvatam asakrām | stutaś ca vām mādhvī suṣṭutiś ca rasāś ca ye vām anu rātim agman ||

Pad Path

पु॒रु। हि। वा॒म्। पु॒रु॒ऽभु॒जा॒। दे॒ष्णम्। धे॒नुम्। नः॒। इष॑म्। पि॒न्व॒त॒म्। अस॑क्राम्। स्तुतः॑। च॒। वा॒म्। मा॒ध्वी॒ इति॑। सु॒ऽस्तु॒तिः। च॒। रसाः॑। च॒। ये। वा॒म्। अनु॑। रा॒तिम्। अग्म॑न् ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:63» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और प्रजाजन कैसे वर्त्ताव कर क्या पावें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुभुजा) बहुतों की पालना करनेवालो ! (वाम्) तुम दोनों (नः) हमारे लिये (पुरु) बहुत (देष्णम्) देने योग्य पदार्थ (धेनुम्) वाणी और (असक्राम्) सहन को उल्लङ्घन करनेवाला (इषम्, च) अन्न वा विज्ञान को भी (पिन्वतम्) सुखयुक्त करो अर्थात् पुष्ट करो। जो (हि) निश्चित (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त है (च) वह भी (वाम्) तुम दोनों को पुष्टि दे (ये) जो (वाम्) तुम दोनों के (माध्वी) माधुर्य्यादिगुणयुक्त (सुष्टुतिः) श्रेष्ठ प्रशंसा (रसाः, च) और रस हैं उनसे (रातिम्) दान को (अनु, अग्मन्) प्राप्त होते हैं, उनसे हमको युक्त कराइये ॥८॥
Connotation: - जो राजा और प्रजाजन परस्पर के उपकार के लिये प्रयत्न करें तो इनको सर्व प्रशंसा और सकल ऐश्वर्य भी प्राप्त होवे ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजप्रजाजनाः कथं वर्त्तित्वा किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुभुजा ! वां युवां नः पुरु देष्णं धेनुमसक्रामिषं च पिन्वतम्। यो हि स्तुतः स च वां पिन्वतु ये वां माध्वी सुष्टुती रसाश्च सन्ति तै रातिमन्वग्मँस्तैरस्मान् योजयतम् ॥८॥

Word-Meaning: - (पुरु) बहु (हि) निश्चये (वाम्) युवयोः (पुरुभुजा) बहुपालकौ (देष्णम्) दातव्यम् (धेनुम्) वाचम् (नः) अस्मभ्यम् (इषम्) अन्नं विज्ञानं वा (पिन्वतम्) सुखयतम् (असक्राम्) या सहनं क्रामति ताम् (स्तुतः) प्रशंसितः (च) (वाम्) (माध्वी) माधुर्य्यादिगुणोपेता (सुष्टुतिः) श्रेष्ठा प्रशंसा (च) (रसाः) मधुरादयः (च) (ये) (वाम्) युवाम् (अनु) (रातिम्) दानम् (अग्मन्) प्राप्नुवन्ति ॥८॥
Connotation: - यदि राजप्रजाजनाः परस्परेषामुपकाराय प्रयतेरँस्तर्ह्येतान् सर्वा प्रशंसा सकलमैश्वर्यं च प्राप्नुयात् ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर राज प्रजाजनांनी परस्पर उपकार करण्यासाठी प्रयत्न केले तर त्यांची सर्वजण प्रशंसा करतील व त्यांना संपूर्ण ऐश्वर्यही प्राप्त होईल. ॥ ८ ॥