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यु॒वं श्री॒भिर्द॑र्श॒ताभि॑रा॒भिः शु॒भे पु॒ष्टिमू॑हथुः सू॒र्यायाः॑। प्र वां॒ वयो॒ वपु॒षेऽनु॑ पप्त॒न्नक्ष॒द्वाणी॒ सुष्टु॑ता धिष्ण्या वाम् ॥६॥

English Transliteration

yuvaṁ śrībhir darśatābhir ābhiḥ śubhe puṣṭim ūhathuḥ sūryāyāḥ | pra vāṁ vayo vapuṣe nu paptan nakṣad vāṇī suṣṭutā dhiṣṇyā vām ||

Pad Path

यु॒वम्। श्री॒भिः। द॒र्श॒ताभिः॑। आ॒भिः। शु॒भे। पु॒ष्टिम्। ऊ॒ह॒थुः॒। सू॒र्यायाः॑। प्र। वा॒म्। वयः॑। वपु॑षे। अनु॑। प॒प्त॒न्। नक्ष॑त्। वाणी॑। सुऽस्तु॑ता। धि॒ष्ण्या॒। वा॒म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:63» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजादि किसके लिये किसको प्राप्त होके कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (धिष्ण्या) दृढ प्रगल्भो ! जो (वाम्) तुम दोनों जैसे (वयः) पक्षी (पप्तन्) गिरते हैं, वैसे (शुभे) कल्याणरूपी (वपुषे) सुरूप के लिये (सुष्टुता) उत्तम प्रशंसा को प्राप्त (वाणी) वेदवाणी (अनु, नक्षत्) अनुकूलता से व्याप्त वा प्राप्त हो और जो (युवम्) तुम दोनों (दर्शताभिः) द्रष्टव्य (आभिः) इन (श्रीभिः) राजनीति की शोभाओं से (सूर्यायाः) उषासम्बन्धिनी प्रजा से वाणी की (पुष्टिम्) पुष्टि को (प्र, ऊहथुः) प्राप्त कराते हो वे (वाम्) तुम दोनों निरन्तर पुष्टि करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! यदि तुम लोग राज्य करने की और राज्यलक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा करते हो तो प्रयत्न से और समस्त धन आदि से विद्यायुक्त वाणी को प्राप्त होओ और जैसे पक्षी अपने आश्रय को प्राप्त होते हैं, इसी प्रकार तुम धर्मयुक्त नीति को प्राप्त होकर जैसे उषाकाल दिन को, वैसे यश को प्रकाशित करो ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादयः कस्मै कां प्राप्य कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे धिष्ण्या ! यदि वां वय इव पप्तन् शुभे वपुषे सुष्टुता वाण्यनु नक्षद् यदि युवं दर्शताभिराभिः श्रीभिः सूर्याया इव वाचः पुष्टिं प्रोहथुस्तर्हि तौ वां सततं पोषयेतम् ॥६॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (श्रीभिः) राजनीतिशोभाभिः (दर्शताभिः) द्रष्टव्याभिः (आभिः) वर्त्तमानाभिः (शुभे) कल्याणाय (पुष्टिम्) पोषणम् (ऊहथुः) प्रापयथः (सूर्यायाः) उषस इव सम्बन्धिन्याः प्रजायाः (प्र) (वाम्) युवयोः (वयः) पक्षिणः (वपुषे) सुरूपाय (अनु) (पप्तन्) पतन्ति (नक्षत्) व्याप्नोतु प्राप्नोतु वा (वाणी) वेदवाक् (सुष्टुता) सुष्ठु प्रशंसिता (धिष्ण्या) दृढौ प्रगल्भौ (वाम्) युवाम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यदि भवन्तो राज्यं कर्तुं राज्यश्रियं प्राप्तुं च चिकीर्षन्ति तर्हि प्रयत्नेन सर्वेण धनादिना च विद्यायुक्तां वाचं प्राप्नुवन्तु यथा पक्षिणः स्वाश्रयं गच्छन्ति तथैव भवन्तो धर्म्यां नीतिं प्राप्योषा दिनमिव यशः प्रकाशयन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही राज्य करण्याची व राज्यलक्ष्मी प्राप्त करण्याची इच्छा करता तेव्हा प्रयत्नपूर्वक व संपूर्ण धन इत्यादीने विद्यायुक्त वाणी प्राप्त करा. जसे पक्षी आपला आश्रय शोधतात त्याप्रमाणे तुम्ही धर्मयुक्त नीतीने उषा जशी दिवस प्रकाशित करते तसे यश प्राप्त करा. ॥ ६ ॥